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________________ समर्थन मे अन्य वस्तु का उल्लेख किया जाए, वहाँ अर्थान्तरन्यास अलकार होता है।' आचार्य उदभट का कथन है कि इसमें समर्थ समर्थक भाव होता है। समर्थक वाक्य का उल्लेख पहले किया जाता है और समर्थ्य का बाद मे । इन्होंने इसे अप्रस्तुत प्रशसा तथा दृष्टान्त से भिन्न अलकार स्वीकार किया है । उद्भट के अनुसार समर्थ्य - समर्थक भाव ही इस अलकार का जीवातु है ।2 आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ सामान्य का विशेष से अथवा विशेष का सामान्य से समर्थन किया जाए वहाँ अर्थान्तर न्यास अलकार होता है उन्होंने प्रत्येक के साधर्म्यगत तथा वैधर्म्यगत दो भेदों का उल्लेख किया है । आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ सामान्य विशेष भाव या कार्यकारण भाव से प्रकृत का समर्थन किया जाए वहाँ अर्थान्तर न्यास अलकार होता है । __ आचार्य रूय्यक, विद्यानाथ तथा विश्वनाथ ने अजितसेन की भाँति कार्यकारण भाव मे भी इसकी सत्ता स्वीकार की है । आचार्य अजितसेन ने मम्मटानुमोदित साधर्म्य तथा वधर्म्य का उल्लेख नहीं किया अत इनके अनुसार - 410 सामान्य से विशेष के समर्थन मे, 20 विशेष से सामान्य के समर्थन में, 130 कार्य से कारण के समर्थन मे और 4 कारण से कार्य के समर्थन मे अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है 6 का0द0 - 2/169 काव्या० सा0 स0, 2/4-5 का0प्र0, 10/109 ससामान्यविशेषत्वात् कार्यकारणभावत । प्रकृत यत्समर्थतार्थान्तर्यसनं मतम् ।। अचि0 4/274 का सामान्यविशेषकार्यकारणभावाभ्या निर्दिष्ट प्रकृत समर्थन अर्थान्तरन्यास । अ0स0सू० - 36 खि प्रताप0, पृ0 - 545 गि सा0द0, 10/61 अ०चि०, पृ0 - 201
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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