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________________ 16 तर्कन्यायमूलक अलंकारः अनुमानः ___ आचार्य रुद्रट के अनुसार जहाँ कवि परोक्ष साध्य पदार्थ को पहले उपन्यस्त कर तत्पश्चात् साधन का उपन्यास करता है अथवा साधन का प्रतिपादन करने के पश्चात् साध्य वस्तु का निर्देश करता है तो वहाँ अनुमान अलकार होता है ।' आचार्य भोज ने लिग के द्वारा लिगी के ज्ञान को अनुमान के रूप मे स्वीकार किया है 12 जबकि मम्मट साध्य-साधन भाव के कथन मे अनुमान को स्वीकारने के पक्ष मे है 13 आचार्य अजितसेन ने अनुमान के उदाहरण को ही प्रस्तुत किया है इसके लक्षण का उल्लेख नहीं किया । आचार्य रुय्यकादि की परिभाषाएँ मम्मट के निकट है 15 अनुमान प्रमाण के समान इस अलकार में भी साधन से साध्य की अनुमिति की जाती है । चमत्कार होना आवश्यक है, अतएव 'पर्वतो वह्निमान्, धूमात्' में अनुमान अलंकार नहीं हो सकेगा । साधन सर्वदा तृतीया या पचमी या 'यत्, यस्मात्' आदि द्वारा घोतित होगा । नैयायिको के अनुमान के समान चाहे यह तर्क संगत न भी हो, ते भी अलंकार होता है । यहाँ साधन सदैव सूचक होता है । काव्या0, 7/56 स0क0म0, 3/47 का0प्र0, 10/117 अचि0, 4/271 एक अ0स0, सू० - 59 ख चन्द्रा0, 5/36 (गः प्रताप०, पृ0 - 543 of सा0द0, 10/63 ड) कुव0, 109 चई र040, पृ0 - 640
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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