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________________ प्रदान की गयी । आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ उपमेय के रहते हुए उपमान की व्यर्थता का प्रतिपादन किया जाए या उपमेय की उपेक्षा या उपमान का तिरस्कार किया जाए, वहाँ प्रतीप अलकार होता है । उपमान के अपकर्ष के व्यापार को प्रतीप के रूप में स्वीकार किया गया है 1 "उपमानापकर्ष बोधानुकूलो व्यापार प्रतीपम्". परमानन्दचक्रवती, काव्यप्रकाश विस्तारिका 0 - उद्धृत - चन्द्रालोक - सुधा, हिन्दीटीका पृ० अनादर्शधिक्य का प्रतिपादन द्वारा उपमान की व्यर्थता आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ उपमान के किया जाए अथवा किम, उत आदि तिरस्कार वाचक पदों के सूचित की जाए वहाँ प्रतीप अलकार होता है । इन्होंने इसके दो भेदों का उल्लेख किया है 10 अलौकिक उपमेय से उपमान के आक्षेप मे होने वाला प्रतीप तथा [2] उपमान की उपमेयत्व के रूप में कल्पना होने पर द्वितीय प्रतीप 12 2 - अजितसेन कृत परिभाषा मम्मट के निकट है । अन्य परवर्ती आचार्यों की परिभाषाओं मे किसी नवीन तत्व की उपलब्धि नहीं होती । विद्यानाथ, विश्वानाथ तथा पण्डित राज कृत परिभाषा अजितसेन के समान है । 3 आचार्य भामह, दण्डी, उद्भट तथा वामन ने इसका उल्लेख नहीं किया । 3 1530 ले० सिद्धसेन दिवाकर | 100, 10/133 अक्षिप्तिरूपमानस्य कैमर्थक्यान्निगद्यते । तस्योपनेयता यत्र तत्प्रतीपं द्विधायथा ।। लोकोत्तरस्योपमेयस्योपमानाक्षेपो यत्र तदेकम् । यत्र चोपमानस्योपमे यत्व कल्पना द्वितीयमिति प्रतीपं द्विधा । अ०चि०, 4/267 एव वृत्ति (क) आक्षेप उपमानस्यकैमर्थक्येन कथ्यते । यद्वोपमेयभाव स्यात् तत्प्रतीपमुदाद्दतम् ।। प्रताप० पृ0-5420 (ख) सा0द0, 10/87 (ग) रसगगाधर, पृ० - 547
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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