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________________ मलयालों का नाश किया, कालराज को कम्पायमान किया तथा नीलगिरि के ऊपर जाकर विजय की पताका फहरायी ।" "न0 103, सन् ।।20 सुकदरे ग्राम मे लक्कम्म मन्दिर के सामने पाषाण पर । माता एचले के पुत्र अत्रेयगोत्री जक्किसेट्टि ने अपने सुकदरे ग्राम मे एक जिनालय बनवाया व उसके लिए एक सरोवर भी बनवाया तथा दयापालदेव के चरण धोकर भूमिदान की । इसके गुरु अजितमुनि यति थे जो द्रविल सघ मे हुए, जिसमे समन्तभद्र, भट्टाकलक, हेमसेन, वादिराज व मल्लिसेण मलधारी हुए ।" "न0 37, सन् ।।47, तोरणवागिल के उत्तर खम्भे पर । - जगदेवमल्लके राज्य में राजा तैलसान्तर जगदेकदानी हुए । भार्या चट्टलदेवी इनके पुत्र श्री वल्लभराज या विक्रमसान्तर त्रिभुवनदानी पुत्री पम्पादेवी थी । पम्पादेवी महापुराण मे विदुषी थी .... । पम्पादेवी ने अष्टाविधार्चन महाभिषेक व चतुर्भक्ति रची । यह द्रविलसघ नन्दिगण अरूगलान्वय, अजितसेन, पण्डितदेव या वादीभसिह की शिष्या श्राविका थी । पम्पादेवी के भाई श्री वल्लभराज ने वासुपूज्य सी0 देव के चरण धोकर दान किया ।"3 "न0 130, लगभग सन् ।।47 ई0 इस बस्ति के द्वार पर । श्री अजितसेन भट्टारक का शिष्य बडा सरदार पर्मादि था । उसका ज्येष्ठ पुत्र भीमप्य, भार्या। देवल मद्रास व मैसूर प्रान्त के जैन स्मारक, पृ0 - 186, उद्धृत अलकार चिन्तामणि, पृष्ठ सख्या 29 वही - पृ0स0 - 202, उद्धृत - अ०चि0 पृ0 - 29 । वही - पृ0स0 - 319, उद्धृत - अचि0 पृ0 - 30 ।
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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