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________________ "न0 40, सन् 1077 मानस्तम्भ पर - चट्टलदेवी ने कमलभद्र पण्डितदेव के चरण धोकर भूमि दी । पचकूट जिन मन्दिर के लिए विक्रमसान्तरदेव ने अजितसेन पण्डितदेव के चरण धोकर भूमि दी ।"। "न0 3, सन् 1090 के लगभग पोप्पग्राम - इस स्मारक को अपने गुरू मुनि वादीभसिह अजितसेन की स्मृति मे महाराज मारसान्तरवशी ने स्थापित किया । यह जैन आगमरूप समुद्र की वृद्धि मे चन्द्रमासमान था ।"2 "न0 192, सन् ।।03 - चालुक्य त्रिभुवनमल्ल के राज्य मे उग्रवशी अजबलिसान्तर ने पीम्बुच्च मे पचवस्ति बनवायी । उसी के सामने अनन्दूर मे चट्टल देवी और त्रिभुवनमल्ल - सान्तरदेव ने एक पाषाण की वस्ति द्रविलसघ अरूगलान्वय के अजितसेन पण्डितदेव - वादिघरटटके नाम से बनवायी ।" "न0 83, सन् ।।17 - चामराज नगर मे पार्श्वनाथ वस्ति मे एक पाषाण पर जब द्वारावती ,हलेबीडु मे वीरगग विष्णुवर्धन विट्टिग होयसलदेव राज्य करते थे तब उनके युद्ध और शान्ति के महामत्री चाव और अरसिकव्वेपुत्र पुनीश राजदण्डाधीश था । यह श्री अजितमुनियति का शिष्य जैन श्रावक था तथा यह इतना वीर था कि इसने टोड को भयवान किया, कोंगों को भगाया, पल्लवों का वध किया, मद्रास व मैसूर प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक - पृ0-320 - उद्धृत अलकारचिन्तामणि - प्रस्तावना पृ0 - 29 वही - पृ0 स0 291 - उद्धृत अचि0 प्रस्तावना पृ0 29 । वही - पृ0 स0 325 - उद्धृत अचि0 प्रस्तावना पृ0 29 ।
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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