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________________ :: 162 :: मीलन - आचार्य भामह, दण्डी, उद्भट और वामन ने इसका उल्लेख नहीं किया है रुद्रट ने सर्वप्रथम इसकी उद्भावना की जिसका अनुसरण मम्मट, अजितसेन, रुय्यक, विद्यानाथ, विश्वनाथ तथा जगन्नाथ आदि ने किया है । आचार्य रुद्रट के अनुसार जहाँ हर्ष, कोप, भयादि चिन्हों को तत्तुल्य हर्षादि के द्वारा तिरस्कृत कर दिया जाए तो वहाँ मीलित अलकार होता है । इस अलंकार का विकास आचार्य दण्डी द्वारा निरूपित अतिशयोक्ति के निम्नलिखित उदाहरण के आधार पर हुआ है - मल्लिकामालभारिव्य सर्वांगीणार्द्रचन्दना । क्षौमवत्यो न लक्ष्यन्ते ज्योत्स्नायामभिसारिका ।। का0द0 2/2150 काव्य प्रकाश कारादि नवीन आचार्यों ने ऐसे स्थल मे एक स्वतत्र मलित नामक अलकार स्वीकार किया है । आचार्य रुद्रट का मीलित अलकार परवर्ती आचार्यों की परिभाषाओं के समान नहीं है । परवर्ती आचार्यों द्वारा स्वीकृत मलित अलकार रुद्रट के पिहित अलकार के निकट है । जहाँ यह बताया गया है कि प्रबल गुण वाली वस्तु से समान न्यून गुण वाली वस्तु छिप जाती है । वहाँ पिहित अलकार होता है ।2 भोज का मीलित निरूपप रुद्रट से प्रभावित है । आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ कोई स्वाभाविक या आगन्तुक वस्तु अपने चिन्हों के द्वारा प्रबल पदार्थ को तिरोहित कर ले वहाँ मीलित अलंकार होता है । आचार्य अजितसेन कृत परिभाषा मम्मट के समान है इन्होंने मम्मट की ही भाँति सहज और आगन्तुक रूप से दो भेदों का उल्लेख भी किया है इनके अनुसार - सहज वस्तु से आगन्तुक वस्तु का तिरोधान -होने तन्मलितमित यस्मिन्समानचिह्नन हर्ष कोपादि । अपरेपतिरस्क्रियते नित्यनागन्तुकेनापि ।। रु काव्या0, 9/50 रू0 काव्या0, 7/106 स0क0म0, 3/41 का0प्र0, 10/130
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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