SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ :: 161 :: परवी आचार्यों की परिभाषाएँ प्राय मम्मट के समान है ।' व्याजोक्तिः भामह दण्डी तथा उद्भट ने इसका उल्लेख नहीं किया । इसका उल्लेख सर्वप्रथम वामन ने किया । इनके अनुसार छल की सदृशता जहाँ छल से दिखाई जाए वहाँ व्याजोक्ति अलकार होता है ।2 कुछ आचार्य इसे मायोक्ति भी कहते है परन्तु किन आचार्यों के प्रति मायोक्ति का उल्लेख वामन ने किया है यह नहीं कहा जा सकता । आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ प्रकट हुई वस्तु का छल गोपन कर दिया जाए वहाँ व्याजोक्ति नामक अलकार होता है । व्याजोक्ति अलकार मे साधर्म्य का कोई प्रयोग नहीं होता । गोपनीय तथा स्थापनीय पदार्थों मे न कोई उपमेय होता है न उपमाना । परवी आचार्यों मे रुय्यक, विद्याधर, विद्यानाथ तथा विश्वनाथ ने मम्मट के अनुसार लक्षण किया है । ___ आचार्य अजितसेन के अनुसार प्रकट हो जाने वाली कोई बात जहाँ सादृश्य होने से किसी कारणवश छिपा दी जाए वहाँ व्याजोक्ति अलकार होता है। इनके लक्षण मे निम्नलिखित तत्वों का आधान हुआ है । 020 इसमे दो सदृशवस्तु का होना आवश्यक है । प्रकट हुई वस्तु को सादृश्य के कारण छिपा देना ही इस अलकार का जीवन है । जयदेव, अप्यय दीक्षित आदि आचार्यों ने प्रकट हुई वस्तु को को छल से छिपा देने मे व्याजोक्ति अलकार को स्वीकार किया है । इसमें ब्याज के कारण वस्तु गोपन की चर्चा प्राय सभी आचार्यों ने की है । ------------- का चन्द्रा0 5/112 ) कु0, 160 ख प्रताप0, पृ0 - 494. ग सा0द0, 10/92 व्याजस्य सत्यसारूप्य व्याजोक्ति । व्याजस्य छद्मना सत्येन सारूप्य व्याजोक्ति. । 'या मयोक्तिरित्याहु । काव्या०सू0, 4,3, 25 का0प्र0, 10/118 क) अ0स0, सू0 - 77 ख एकावली, 8/67 गः प्रताप0पृ0 495 सा0द0, 10/91 यत्र प्रकाशितं वस्त साम्यगर्भवत पन ।
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy