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________________ है । आशय यह है कि जहाँ साम्य के कारण चित्तवृत्ति दोलायित रहती है, किसी एक विषय का निश्चय नहीं हो पाता है वहाँ सन्देहालकार होता है । इसमे किं, कथमादि पदों के द्वारा दो पदार्थों मे सन्देह की स्थापना की जाती है। इन्होंने इसके तीन भेदों का उल्लेख भी किया है । (10 (2) (30 I 2 3 4 5 शुद्ध सन्देह की कोटि मे रखा गया है । 2 निश्चय गर्भ परवर्ती आचार्य विद्यानाथ, विश्वनाथ, पण्डितराज आदि की परिभाषा अजितसेन से प्रभावित है । भ्रान्तिमान 6 इस अलकार का उल्लेख भामह, दण्डी, उद्भट तथा वामन ने नहीं किया इसकी उद्भावना का श्रेय आचार्य रुद्रट को है 1 रुद्रट के अनुसार जहाँ किसी अर्थ विशेष को देखकर तत्सदृश अन्य वस्तु को बिना सन्देह ही मान ले वहाँ भ्रान्तिमान् अलकार होता है । इस अलकार का स्रोत आचार्य दण्डी की 'मोहोपमा' मे निहित है 15 इसमे उपमेय मे, उपमान के निश्चय को भ्रान्तिमान अलकार कहा गया है 16 - जिसमे अन्त तक सन्देह बना रहता है उसे शुद्ध सन्देह निश्चयान्त. - आरम्भ मे जो सन्देह उत्पन्न होता है, यदि अन्त मे उसका निराकरण हो जाए तो वहाँ निश्चयान्त सन्देह होता है । इसमे दो पदार्थों के मध्य सशय बना रहता है | 3 - - अ०चि० 4/128-29 अ०चि० 4/130 वही 4/131 वही - 4 / 132 काव्यादर्श - 2/25 रू० काव्या० - 8/87
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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