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________________ परवर्ती काल मे विद्यानाथ कृत परिभाषा तथा भेद प्रभेद भी आचार्य अजितसेन से प्रभावित है । सन्देह संस्कृत वाङ्मय मे इसके तीन नामों का उल्लेख प्राप्त होता है 1 आचार्य रुद्रट तथा भोज ने इसे 'सशय' कहा है । भामह तथा उद्भट ने 'स्सदेह' । आचार्य वामन तथा अजितसेन ने संदेह कहा है | 2 आचार्य भामह के अनुसार जहाँ उपमेय की स्तुति के निमित्त उसका उपमान के साथ भेद या अभेद दिखाते हुए सन्देह युक्त वचन का प्रयोग किया जाए वहाँ ससन्देहालकार होता है । 3 है। 5 आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ उपमेय तथा उपमान मे सशय हो वहाँ ससन्देह अलकार होता है 1° इन्होंने इसके दो भेदों का उल्लेख भी किया है । जो भेद की उक्ति तथा अनुक्ति मे होता है । आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ सज्जनों से अभिमत मादृश्य के कारण विषय और विषयी में कवि को सन्देह प्रतीत हो वहाँ सन्देहालकार होता ' आचार्य दण्डी इसे सशयोपमा के अन्तर्गत ही स्वीकार किया है । 4 आचार्य उद्भट ने भामह कृत परिभाषा को ही उद्धृत कर दिया 2 3 4 5 6 प्रताप० पृ० 452 (क) रू० काव्यालंकार 8/59 (ख) सरस्वतीकण्ठाभरण 4/41-42 ग) भा० काव्या० (घ) का०ल०सा०स० (ड) काव्या० सू० (च) अ०चि० - - भा० काव्या० 3/43 काव्यादर्श 2/26 काव्या०सा०स० - 3/43 6/2 4/3/11 4/128 6/2-3 का०प्र० - 10/92 एव वृत्ति
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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