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________________ अजित सेन के अनुसार वक्रोक्ति में निहित तत्त्व - 010 दो व्यक्तियों का होना । (20 वक्ता के द्वारा अन्य अभिप्राय से कहे गए वचन को श्रोता के द्वारा काकु एव वक्रोक्ति के कारण अन्यार्थ समझ लेना । उदाहरण कान्ते पश्य मुदालिमम्बुजदले नाथात्र सेतु कथम् । तिष्ठेत्तन्न च तन्वि वच्मि मधुपकि मद्यपायी वसेत् ।। मुग्धे मा कुरु तन्मति धनकुचे तत्र द्विरेफ ब्रुवे । किलोकोत्तर वृत्तितोऽधम इह प्राणेश्वरास्ते वद ।। अनुप्रास अलंकार: | उक्त श्लोक मे 'अलिम्' के स्थान पर 'आलिम्' का प्रयोग कर वक्रोक्ति की योजना की गयी है । वक्ता कमल दल पर 'अलि' की बात कहता है पर श्रोता - उत्तर देने वाली पत्नी 'आलिम्' का अर्थ 'सेतु' अर्थ लगाकर उत्तर देती है । जब 'अलि' के पर्यायवाची मधुप का प्रयोग किया जाता है तो श्लेष द्वारा मद्यपायी अर्थ प्रस्तुत किया जाता है पुन मे दो रकार होने से वक्ता है, तो श्रोता पत्नी 'प्राणेश्वरा' मे द्विरेफ देती है कि यहाँ प्राणेश्वर कहाँ है । उत्तरार्द्ध मे श्लेष लिया गया है अत यहाँ वक्रोक्ति अलकार है । द्विरेफ की बात कही जाती है कमल दल पर द्विरेफ के विचरण दो रकार का अर्थ इस प्रकार प्रथमार्द्ध मे द्वारा प्रस्तावित अर्थ से भिन्न अर्थ के द्योतक अर्थात् भ्रमर शब्द की चर्चा करता ग्रहण कर उत्तर काकु द्वारा तथा वाक्य का आश्रय अ०चि० - भा०क०ल० 2/4-5-7 - 3/2 आचार्य भामह ने यमक, रूपक, दीपक तथा उपमा अलकार के साथ अनुप्रास अलकार की भी चर्चा की है किन्तु यह इनका अपना मत नहीं है ।। इन्होंने स्वरूप वर्षों के विन्यास मे अनुप्रास अलकार की सत्ता स्वीकार की है । आचार्य दण्डी ने रसोत्कर्षता पर विचार करते हुए इसे 'रसावह' कहा
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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