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________________ रुद्रट के अनुसार जहाँ, वक्ता अन्य आभप्राय से किसी बात को कहता है और उत्तर देने वाला पदों को भग करके जहाँ अविवक्षित अर्थ, को कहता है वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलकार होता है। तथा जहाँ स्पष्ट रूप से उच्चारण किए गये स्वर- वैशिष्ट्य के कारण अर्थान्तर की प्रतीति होती है वहाँ काकुवक्रोक्ति अलकार होता है । मम्मट, रुय्यक, शोभाकर मित्र, जयदेव, वाग्भट, अप्पयदीक्षित, भट्टदेवशकर पुरोहित तथा विश्वेश्वर पर्वतीय की परिभाषाएँ रुद्रट से प्रभावित है । आचार्य अजित सेन कृत परिभाषा पूर्ववर्ती आचार्यो से भिन्न है । इनके अनुसार जहाँ शब्द और अर्थ की विशेषता के कारण प्राकरणिक अर्थ से भिन्न अर्थान्तर की प्रतीति हो वहाँ वक्रोक्ति अलकार होता है। ___ इन्होंने आचार्य रुद्रट तथा मम्मट की भाँति श्लेष तथा काकु मे होने वाली वक्रोक्ति का उल्लेख नहीं किया तथापि इनके द्वारा निरूपित वक्रोक्ति मे भी उक्त तत्वों का समावेश स्वीकार करना होगा, क्योंकि इन्होंने 'यत्रवक्राभिप्रायतो वाच्य प्रस्तुतादपरं वदेत्' - का उल्लेख कर यह स्पष्ट कर दिया है कि कुटिलाभिप्राय से युक्त वाग्विन्यास के द्वारा जहाँ अर्थान्तर की प्रतीति हो वहाँ वक्रोक्ति अलकार होता है । यहाँ अर्थान्तर की प्रतीति का कारण काकु अथवा श्लेष के अतिरिक्त दूसरा हो ही नहीं सकता । अत काकुगत वक्रोक्ति तथा श्लेषगत वक्रोक्ति - इन दो भेदों का समावेश अजित सेन कृत परिभाषा मे स्वीकार करना होगा । इनके द्वारा निरूपित उदाहरण मे काकवक्रोक्ति एव श्लेषवक्रोक्ति दोनों ही तत्त्व समाहित -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - का०ल0 - 2/14 वही - 2/16 का0प्र0 - 9/78 अ0स0 - 78 अ0र0 - 105 चन्दा० - 5/1।। वाग्भटालकार - 4/14 कुव - 159 अ०म० - 123
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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