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________________ २०२ प्रस्तुत प्रश्न नहीं सकते, यह माना नहीं जा सकता । अभी वे स्वार्थ-साधनके काम में आते हैं, तब वे सत्यकी सेवा और सर्वोदयके लिए युक्त होंगे। मुझे तो मालूम होता है कि सत्यकी ओर मनुष्य जातिकी प्रगति औद्योगिक समस्याओंके निपटारेपर और भी बंधन-मुक्त होगी और वैज्ञानिकता पूँजीगत व्यवसायकी चेरी न होकर कलाकी भाँति स्वाधीन होगी। प्रश्न--मेरा मतलब यह था कि वैज्ञानिकोंका यह कर्त्तव्य है कि अपने शोध-कार्यसे वह अधिक लोगोंकी सेवा करें। अर्थात् विज्ञानका उपयोग यदि मानव-जातिको देना है तो उसे स्वयं थोक उत्पादनके ( =mass production के ) तरीकेकी ही शरण लेनी होगी। अगर यह न हुआ तो वैज्ञानिक जो कार्य करेंगे उनसे किसीको कोई लाभ न होगा और अंतमें उनके सामने आर्थिक दृष्टिसे संकट आ जानेसे उनका कार्य असंभव हो जायगा। क्या यह एक विषम-चक्र ( =Vicious circle ) ही नहीं है ? उत्तर-जिस थोक उत्पादनको (=mass production को ) रोकनेकी बात कही वह वही है जिसके निमित्तसे दो समूहों, वर्गों अथवा देशों में शोषणका संबंध बनता है । अर्थात् जिसके लिए बाजार पानेका सवाल होता है और फिर तनातनी चल निकलती है । यानी जिन बड़े उद्योगोंका हेतु व्यवसाय है, पूँजीका बढ़ाना है, ऊपरकी बात उन उद्योगोंके अर्थात् व्यवसाय-वादके विरुद्ध है । कल्पना यह नहीं है कि एक अकेला आदमी ही खुर्दबीन (=micro-cope) बनाए और वह किसी कारखाने में न बने । मेरा ख्याल है कि माइक्रोस्कोप इतने बनें कि वह हर छोटी-बड़ी शिक्षा-संस्थाके लिए सुलभ हो जाये तो अच्छी ही बात होगी। इस तरह ज्ञान-विज्ञानके उपादानोके उत्पादनपर कोई प्रतिबंध नहों लगना चाहिए । प्रत्युत उनका तो और प्रोत्साहन ही मिलना चाहिए। उनके थोक उत्पादनकी जरूरत तो और अधिक ही होगी। प्रश्न तो Industrial lurge scale production अर्थात् व्यावसायिक उद्योगोंका है । उसका तो विस्तृतीकरण ( =Decentralization) ही एक उपाय है । प्रश्न-आप केंद्रहीनताको ( Decentralization को) इसका एक ही उपाय मानते हैं। साथ ही आप यह भी चाहते हैं कि सांस्कृतिक केंद्रीयता भी आवे । मैं इन बातोंको परस्पर विरोधी
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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