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________________ २ - ऐतिहासिक भौतिकवाद प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवादके विषयमें आपके विचार क्या हैं ? उत्तर—उसके बारेमें मेरा अध्ययन जितना चाहिए उतना नहीं है । ऐसा तो मुझको मालूम होता है कि विचार करनेकी उस पद्धति में कुछ अधूरापन भी है । जो मेरी उस संबंध में धारणा बन सकी है, उससे चित्तको समाधान जैसा नहीं मालूम होता । सच बात यह है कि उस शब्द के भाव को ही मैं पूरी तरह ग्रहण नहीं कर पाता हूँ । 1 प्रश्न - क्या यह सच नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति और पर्यायतः समाजको भौतिक लाभ और ऐहिक सुखकी ही सबसे पहले चिन्ता होती है ? और इसी उसूलपर आज तक का इतिहास बनता आया है । ऐसी दशा में धार्मिक आदर्श-वादको मानव समाज के प्रत्यक्ष जीवनमें कौन-सा स्थान है ? क्या भौतिक दृष्टिसे ही इसकी ओर देखना अधिक उचित न होगा ? उत्तर- - अगर यह मान भी लिया जाय कि व्यक्ति भौतिक अभिलाषाओंको लेकर चलता है, तो भी यह मैं नहीं स्वीकार कर सकूँगा कि ऐतिहासिक तत्त्वकी कुंजी उन अभिलाषाओं की भौतिकता में छिपी हुई है । व्यक्ति व्यक्तिगत जीवन में किन्हीं भी प्रेरणाओंको लेकर जीए, दुःखसे मरे अथवा सुखसे मरे, यह असंदिग्ध है कि उसके जीवन-मरण-द्वारा जातिका अथवा इतिहासका ही कोई उद्देश्य अपने को पूरा कर रहा है । व्यक्तिकी इच्छाएँ भौतिक दीखती हों सही; पर इतिहासका उद्देश्य भौतिक है यह मानना धृष्टताका काम होगा । विकासवादके अनुसार वनस्पति- जीवन बढ़ते बढ़ते आज मानवचेतना तक आ गया है तो क्या इसको भौतिक लाभ कहें ? मानवताका विकास क्या उसकी नैतिक संस्कृति में ही हमको नहीं दिखाई देता है ? अगर विकासका अभिप्राय सांस्कृतिक है तो फिर आदर्श किसी प्रकार भी अनुपयोगी नहीं ठहरता, क्योंकि संस्कृतिकी प्रेरणा आदर्शानुभूति है । इसके बाद मुझे तो इसमें सन्देह है कि सचाईके साथ यह माना जा सकता
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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