SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ प्रस्तुत प्रश्न हर कहीं झगड़ते हैं । लेकिन कौन भला आदमी है जो इसलिए दोके इकटेपनको एकदम असंभव कहेगा। इससे रगड़-बिगड़ तो होती रह सकती है, क्यों कि उसका निपटारा भी होता रह सकता है। लेकिन मामला अगर हिंसातक पहुँचा, -एक दूसरेको नोंच खानेकी प्रवृत्ति ही हो आई, तब तो ईश्वर ही बचाये । और हम विश्वास रक्खें कि ईश्वर है तो रक्षा भी है ही । उस ईश्वरकी तरफ़से यह विधान है कि कोई किसीको खाकर खत्म नहीं कर सकता । मुँह अगर पूछको खाता है तो उससे भयकी आशंका नहीं । उससे किसीको कुछ नुकसान नहीं होगा : क्यों कि यह तो कोरा तमाशा है, माया है । वैसा अपने अंगको खाना कब तक चलेगा ? कोई ऐसा दुराग्रही हुआ भी, तो उसीमें साफ उसकी मौत भी बैठी है।
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy