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________________ क्रान्ति : हिंसा-अहिंसा लिए: और इस प्रकारका एक जगह रहना केवल संघर्ष ही है। यानी, बस चले तो एक दूसरेको हड़पनेकी भावना ही दिन दिन उनमें मजबूत होती जा रही है। क्या इस एक जगह रहने में कोई वास्तविक सहयोग या मेल है, या मेल उगनेका वीज है ? जान तो ऐसा पड़ता है कि वे एक दूसरेसे निवट कर ही रहेंगे। उत्तर--मेलका बीज जरूर है और मुझे नहीं जान पड़ता कि उनमेंसे कोई सफलतापूर्वक किसीको खाकर पचा जा सकेगा। फिर भी आपसमें वे खाऊँखाऊँ करते हैं, यह मैं जानता हूँ। लेकिन इससे कहा यही जा सकता है कि वे अपनेको नहीं जानते । अरे, मैंने एक बाढ़में बहे आते हुए छप्परपर साँप और आदमीको निर्विघ्न भावमे पासपास बैठे आते हुए देखा है । और तो और, ऐसी अवस्थामें शेर-बकरी तक विरोध भूल जाते हैं । यह झूठी बात है कि मिल-मजदूर और मिल-मालिक कभी अपना विरोध नहीं भूलते । और अगर उस प्रकारका विरोध उनकी बोटी-बोटीमें, रग-रगमें, समाता जा ही रहा है तो मैं कह सकता हूँ कि यह अच्छी बात नहीं है, एकदम बुरी बात है । ऐसा ही है, तो दोनों देख न लें एक बार एक-दूसरेको खानेकी कोशिश करके । ऐसी कोशिशसे किसीका पेट नहीं भरेगा, अपच हो जायगा, और पीछे भारी मुसीबत उठानी पड़ेगी। आप समझते हैं प्रालितारियत वर्गने रूसके प्रयोगमें उच्च वर्गको (%DCapital को ) खा लिया और खाकर पचा लिया ? शायद एकाएक तो मुंह फाड़कर उस केपिटलको हड़प लिया भी गया हो, लेकिन वह खाया पच नहीं सका और रह-रहकर वहाँ जीकी उबकाईके दृश्य दीखने में आते हैं और निगला हुआ क्रम क्रमसे उगला भी आ रहा है । मैं कहता हूँ कि नहीं है घृणा मानवताका भोजन । जो उसे खायगा, वह पछतायगा। भखे हो तो भूख सह ला; पर जहर न खाओ । भूखमें जहरको ही ज़्यादा खाकर एकाएक पेट भरा-सा लग आ सकता है, लेकिन यह तरीका भूख तो भूख, पेटसे ही हाथ धो बैठनेका है। असल बात यह है कि मानवीय श्रम और पूँजी-प्राप्य साधन दोनों से किसी भी एक अकेलेसे काम नहीं चलता । साधनहीन उद्यम कोरे सपनेकी कारवाई जैसा हो जाता है और उद्यमका तिरस्कार करके साधन स्वयं तो जड़ हैं ही । इसलिए श्रम और पूँजीमें सहयोग होना होगा । यों आपसी बन अनबन कहाँ नहीं लगी है ? दो भी हों तो बासन खटक पड़ते हैं । पति-पत्नी
SR No.010836
Book TitlePrastut Prashna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1939
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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