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________________ प्रास्ताविक मुट्ठीभर शोषक वर्ग के जीवन में सिर्फ प्रदर्शित ही किये जासकते हैं । सत्यामृत या इस मानवधर्म शास्त्र की दृष्टि में ऐसी व्यावहारिकता है जो पृथ्वी के दर एक भूखद में तथा हर एक वर्ग के मनुष्य के जीवन मे सफलता के साथ दिखाई दे सके। इसप्रकार वास्तव में इस मानवधर्म शास्त्र की यह व्यावहारिक उदारता है । उदारता के वे सन्देश सिर्फ एक तरह की स्वपरवञ्चना ही है जो मुट्ठीभर शोषक या मुफ्तखोर माद मियों को छोड़कर सब के जीवन में न दिखाई दे सकें, या मनुष्य मात्र के जीवन में दिखाई दे सके तो मनुष्य जाति की इतिश्री करदें। इसप्रकार यह मानवधर्म शास्त्र व्यावहारिक उदारता की चरम सीमावर कहा जा सकता है | इसप्रकार इनके दोनों नाम उचित और सार्थक हैं । f 4 इसके तीन का है। दृष्टिकांड आधारकार्ड ' व्यवहार कार्ड | इसमें यह दृष्टिकाढ मुख्य है । इसमें जीवन के समाजके राष्ट्र के भिन्न भिन्न धर्मों और धर्मसंस्था के अंगों प्राय सभी मुख्य मुख्य रूपा पर एक सस्यमय दृष्टि डाली गई है। इसप्रकार माचार और व्यवहार के सूत्र भी इसमें शामिल होगये हैं । यद्यपि टिका के पढ़ने पर भी श्राचार का और व्यवहार काट के पदने की आवश्यकता बनी ही रहती है, क्योंकि नाचार काढ 'व्यवहार कांड में जो विशेष और मौलिक विवेचन किया गया है वह दृष्टिकाण्ड पढ़ने से ही समझ में नहीं आ जाता, फिर भी उनके विवेचन की दृष्टि मिश्र जाती है । इसप्रकार दृष्टिकांड को पूरे मध्यामृत का मूलाधार का जासकता है बल्कि यों भी कहा जासकता हूं कि व्यवहार कोड की किसी बात की परख आचार काढ की कसौटी पर कसको करना चाहिये और माधार कार्ड की किसी बात की परख दृष्टिकांड की कसौटी पर कसकर करना चाहिये । 1 f 1 दूसरी आवृति की विशेषता ( परिवर्धन) ग्यारह साल में इष्टिका की दूसरी आवृत्ति होरही है । निसन्देह इस ग्रन्थ का इतना कम 'स्वार दुर्भाग्य की निशानी है । किसके दुर्भाग्य की निशानी है, इसका निर्णय पाठकों को या दुनिया को ही । पर इसमें आये कुछ नहीं है ऐसी खुराक बहुत धीरे धीरे ही गळे उत्तरती है । करना 1 इस दूसरी कावृति की दो विशेषताएँ हैं । पहिली और छोटीसी विशेषता यह है कि इस भावृत्ति मे हरिकेाद में भाये हुए समस्त पारिभाषिक शब्दों के पर्याय शब्द मानवभाषा में दे दिये गये हैं। जो सुन उन शब्दों के बाद कोक में हैं। इसरकार मानवभाषा के शब्द भण्डार की अच्छी सामग्री इस वृत्ति है। 1 दूसरी और महत्वपूर्ण विशेषता है इस प्रावृत्ति का परिवर्धन | पहिली आवृत्ति की अपेक्षा इस आवृत्ति में सवाये से भी अधिक मसाला है। पैका टाईप होने से इस आवृति के हर एक पृष्ट में अथमावृत्ति की अपेक्षा दत ग्यारह पक्तियाँ अधिक आई हैं, इसने पर भी चालीस पचास पृष्ठ अधिक हैं । जिनने पथमावृत्ति पढ़ी है उनको भी इस बावृत्ति में अनेक नई बातें जानने को मिडेंगीं । पाठक पदकर ही इको समझ सकते हैं। कुछ संकेत यहां भी किया जाता है [ 1 पहिले अध्याय में, मंगलाचरण सत्येश्वर का रूपदर्शन, गुणदेव कुटुम्ब, कथा, आदि न्हकरण बढ़ाये गये हैं । परीक्षा के मेद नये ढंग से किये गये हैं, तथा प्रमाण आदि की मीमांसा और भी विकसित की गई है। मावृत्ति से इस भावृत्ति में यह अध्याय दूने से भी अधिक होगया है । f दूसरे अध्यायमें न्याय देवताकी कथा देकर तथा अन्य विवेचनमे प्रायः सभी बातें कुछ विकसित घाँके से कहीं गई है । यह अध्याय मी प्रथमावृति में दूना होगया हूँ 1
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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