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________________ प्रस्तावना जब से मैने सत्यसमाज की स्थापना की तभी से मुझे इस वान का अनुभव हो रहा है कि इस प्रकार के गीत या कविताएँ तैयार की जॉय जिनमें सर्व-वर्म-ममभाव और सर्व-जाति-समभाव तथा विवेक आदि के भाव भरे हो । पिछले चार वर्षों से मैं ऐसे गीत तैयार कर रहा हू । सत्यसगीत उनका सग्रह है । साथ ही इसमे कुछ कविताएँ और आगई हैं जो कि समय समय पर मेरे हृदय के बाहर निकले हुए उद्गार हैं । ये सब गीत दूसरों के लिये कितने उपयोगी होंगे यह मैं नहीं कह सकता परन्तु इनसे मुझे बहुत शान्ति मिली है और मिलती है । बहुत से मित्र खासकर मत्यसमाजी बन्धु भी इन कविताओं का नित्य उपयोग करते हैं । अधिकाश कविताएँ प्रार्थनारूप हैं जिसमे भ सत्य भ. अहिंसा तथा महात्मा पुरुषों का गुणगान है । ये प्रार्थनाएँ आस्तिकों के लिये भी उपयोगी है और नास्तिको के लिये भी उपयोगी हैं । सत्य और अहिमा को भगवान भगवती या जगत्पिता और जगदम्बा मानलेने से एक तरह की सनाथता का अनुभव होता है, सकट में धैर्य रहता है और जीवन के मामने एक आदर्श रहता है इसलिये जगत्कर्तृत्ववाद को न मानने पर भी इनकी उपासना हो सकती है और ईश्वर मानने के लाभ मिल मकते हैं । और आस्तिक को तो इन प्रार्थनाओ मे आपत्ति ही क्या है ? यहा सत्य और अहिंसा की सगुणोपासना की गई है । सत्य और अहिमा एक बार्मिक मिद्धान्त है और सब वर्मों के मूल हैं पर इतना मह देने से हमारे दिल की प्यास नहीं बुझती । दिल की
SR No.010833
Book TitleSatya Sangit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1938
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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