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________________ विवाह के दुष्परिणाम ८३ पड़ा था और वह भी बुआजी के कारण बहुत कम, और मुझे तो कुछ भी न करना पड़ा था, परन्तु विवाह के बाद जो गरीवी आई उसका अनुभव मुझे भी करना पड़ा। मेरे शिक्षण के अन्तिम वर्ष तो काफी कष्ट में बीते । विवाह के बाद लोग अपनी पत्नी को प्रसन्न रखने के लिये अनेक तरह की मिठाइयाँ और मेवे लाते हैं, गरीब आदमी भी अपनी पत्नी के हाथ में रुपया दो रुपया कभी कभी दे देता है परन्तु विवाह के बाद पांच वर्ष के भीतर मैं अपनी पत्नी को कुल मिला कर एक रुपया भी नहीं दे सका । उसे इसका रंज रहता था और मुझे उस पर क्रोध आता था कि मेरी गरीबी की हालत यह क्यों नहीं समझती ? अडौंस पड़ोस में मेरे साथ जिन जिन लोगों के विवाहं हुए थे वे अपनी पत्नी के साथ रात में खाने के लिये मेवा मिठाई आदि लाते थे परन्तु मैं कुछ भी नहीं, ला सकता था। मेरी पत्नी जब उन स्त्रियों में बैठती और पति के व्यवहार की चर्चा चलती तब उसे बड़ा दुःख होता । वह रात में मुझसे कहती कि सब के पति अपनी स्त्रियोंसे प्रेम करते हैं, मिठाइयों लाते हैं पर तुम कुछ भी नहीं लाते । म कहता कि प्रेम मन की चीज़ है, खाने खिलाने से उसका कोई सम्बन्ध नहीं। जिनके पास पैसा है वे खिलाते हैं पर मेरे पास पैसा नहीं मैं क्या खिलाऊं? जब मैं अपना कमाऊंगा तब हर दिन मिठाई आदि जो कुछ 'तुम कहोगी खिलाऊंगा । इस प्रकार भविष्य के सब्जबाग दिखाकर और मीठी २ बातें बनाकर मैं पत्नी को बहलाया करता था । इतने पर भी अगर उस. सन्तोप न होता तो कठोर शस्त्र से काम लेना पड़ता। मैं कहता तुम्हें मुझस.. प्रेम नहीं है, मिठाई से प्रेम है।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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