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________________ गरीबी का अनुभव [ २५ अमीरी भोग रहे हैं परन्तु यह अमीरी की मूर्ति नहीं है गरीबी की दीवार पर सिर्फ अमीरी की छाया है । कभी कभी ऐसा भी अवसर आ जाता कि घर में घी बिलकुल न होता तब मुझे भी न मिलता और घी के विना तो मैं खा ही नहीं सकता था इसलिये बुआ रोटी पर पानी मठ्ठा दध जो कुछ मिलता चिपड़कर ले आती तब मैं घी-चिपड़ी रोटी __समझकर खाने लगता । एकबार एक पड़ोसिन ने यह रहस्य खोल दिया परन्तु उसकी बात का मैंने विश्वास नहीं किया। सच बात तो. यह थी कि भूख के कारण अधिक दुराग्रह करने की मुझमें हिम्मत नहीं थी इसलिये सोचता कि अगर इसे धी न मानूंगा तो दूसरा घी न मिलेगा और बिना घी के तो मैं खा नहीं सकता । ... . पर ऐसी घटना आपवादिक थी। रोज़मरी का जीवन तो खाने पीने की तरफ़ से सन्तोषप्रद था । इस आरामने तथा लाड़ प्यारने मुझे खूब उदंड तथा हठी बना दिया था। इससे मैं पिताजी को तो तंग करता ही था पर बुआ को भी खूब तंग करता था । एकबार बहुत परेशान करने पर उनके मुँह से निकल गया 'हमारा ही तो खाता है और इतना मिजाज़ करता है' . यह वाक्य मेरे हृदय पर वज्र की तरह गिरा । मेरा क्रोध रिसाना उपद्रव सब दूर हो गया । मैं सुन्नसा होकर रह गया। चोट की मात्रा इतनी तेज थी कि मैं रो भी न सका। सब का स्थान चिन्ताने ले लिया। . संध्या के समय जब पिताजी घर आये तब मैं उन्हें घर के
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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