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________________ गरीबी का अनुभव [२३ ' परन्तु घर में गरीबी कुछ कम नहीं थी | वुआ के पास सम्पत्ति वचन रही थी। पहिले ही चोरी और मुकदमेबाजी में धन समाप्त हो गया था, दूकान आग लगाकर लूटी जा चुकी थी दुर्भाग्य से सब आदमी मर गये थे सिर्फ मेरी बुआ और उनकी जेठानी के पुत्र मूलचन्दजी बच रहे थे । डेढ़ वर्ष की उम्र से बुआजी ने उन्हें अपने पुत्र की तरह पाला था इसलिये घर में बुआ का ही एक-छत्र शासन था । यही कारण है कि इस गरीबी में भी बुआजी ने जब हम तीन आदमियों का बोझ उठाया तब मूलचन्द्र जी ने चूँ भी न किया। इतना ही नहीं, किन्तु उनने हम लोगों से निच्छल प्रेम किया । बुआ के कारण अगर मूलचन्दजी ऋछ कह न पाते तो भी हम लोगों से प्रेम करने के लिये वे चाध्य नहीं किये जा सकते थे । वास्तव में उनकी यह उदारता थी कि हमारे साथ उनका व्यवहार और हृदय सगे भाई की तरह रहा । मैं उन्हें दद्दा कहा करता था उन्हीं के कारण मेरा नाम दरवारीलाल हो गया । अन्यथा शाहपुर में मेरा नाम मूलचन्द्र था । मेरी बुआ जेठानी के पुत्र का नाम लेना नहीं चाहती थीं इसलिये . उनने मेरा नाम मूलचन्द्र से दरबारीलाल कर दिया । शाहपुर ___ के बड़े बूढ़े तो तबतक मुझे 'मुलू' कहते रहे जबतक शाहपुर में मेरी शादी नहीं हो गई। ... ... : हाँ तो गरीबी की बात कह रहा था कि घर में खूब गरीबी थी। पिताजी दस पाँच रुपये की पूँजी से-जो कि माताजी के गहने बेंचकर बनाली गई थी-अनाज की दूकान करते थे,
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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