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________________ २५० ] आत्म-कथा कभी यह झगड़ा दो-दो चार-चार दिन तक जाता । परन्तु सुलह करने के सिवाय दूसरा रास्ता ही क्या था? इसलिये अन्तमें सुलह हो ही जाती । इन अनुभवों से मेरा विचार कुछ ऐसा हो गया कि तलाक की प्रथाको कदापि उत्तेजन न देना चाहिए। उसका परिणाम यह होगा कि जहाँ मेल हो सकता है, वहाँ भी मेल न हो सकेगा। हाँ, पहिले कुछ कारण बताये हैं उनकी बात दूसरी है। ___ इन झगड़ों के सिवाय बाकी समय में मेरा दाम्पत्य खूब सुखी था। इन झगड़ों का स्थायी असर न होता था । या यों कहना चाहिये कि मेरी पत्नी इतनी सतर्क थी कि खेद का एक कण भी वह मेरे हृदय में न रहने देती थी-रोकर, हँसकर, विनोदसे, सेवासे, जैसे भी होता वह उसे हटाकर छोड़ती। इतने झगड़े होने पर भी निकट से निकट सहवासी यह नहीं जानते थे कि हममें झगड़ा होता है । हम प्रेमी-युगल के नाम 'से ही विख्यात रहे । इसका कारण यह था कि हम दोनोंने यह नियम बना लिया था कि कोई किसी भी तरह इन झगड़ों की बात 'बाहर न जाने दें । कभी कभी जब झगड़े में मेरा स्वर जोरदार हो जाता तब मेरी पत्नी मुझे टोकती कि देखो आवाज वाहर जा रही हैं। झगड़े में मैं और सब बातों की उपेक्षा कर सकता था, परन्तु इसकी उपेक्षा कभी न करता । मेरा स्वर धीमा हो जाता या मैं चुप हो जाता। अगर इसी बीच कोई मिलने आ जाता तो दोनों ही शीघ्र मुँह पोंछकर बिलकुल स्वस्थ होकर हँसते हुये चेहरे से द्वार खोलते आगन्तुक समझता कि हम किसी विनोद में लीन थे। इस प्रकार प्रेमीयुगलं के नाम से जो हमारी प्रसिद्धि थी वह हमें प्रेमी बनने के
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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