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________________ प्रारम्भिक शिक्षण [१५ सह लेता पर छुट्टी माँगने की हिम्मत न कर पाता । बहुत दिनों बाद मैं समझा कि स्कूल में पेशाब लगना कोई पाप नहीं है । मेरी सहज बुद्धि ने न जाने कैसे.. यह नियम मान लिया था कि किसी अच्छे काम में जाने पर पेशाब लगना, टट्टी लगना भद्दी वात • है । ऐसे काम में अच्छी तरह सब बातों से निबट कर जाना चाहिये । इस मनमाने नियम के कारण स्कूल में पेशाब लगने पर मैं अपने को अपराधी समझता, शर्मिंदा होता और अन्त में पूणापात्र बनता । पर जब मालूम हुआ कि यह अपराध नहीं है तब छुट्टी मांगने लगा । पहिली बार जब मैंने पेशाब की छुट्टी माँगी थी तब मास्टर ने पीठ ठोककर. मुझे शाबाशी दी थी, मानों मैंने बड़ी दिग्विजय की हो । इस विषय का बुद्धपन समाप्त हो जाने पर भी उसके कुछ अच्छे संस्कार अभी भी पड़े हुए हैं। विशेष परिस्थिति को छोड़ कर मैं इस बात की कोशिश करता हूं कि बाहर जाने पर मुझे कोई शारीरिक बाधा न हो। स्कूल से आने पर मेरी बहिन स्वागत करती तब पेशाब की छुट्टी माँगना सीख गया था] मेरे मुँह पर हाथ फेरती और बुआ से कहती- भैया, स्कूल में दिन भर पढ़ते पढ़ते थक गया है मैं उसे अपने हाथ की रोटी खिलाऊँगी । वह मेरे लिये रुपये बराबर छोटी छोटी रोटियाँ बनाकर रखती थी-यद्यपि उनमें आड़े टेढ़े बेलने के सिवाय उसका और कोई पुरुषार्थ न था फिर भी,वह उसी की रोटियाँ कहलाती और मेरे लिये : रिज़र्व रहती । परन्तु आखिर वह भी चल बसी उसके पेट में फोड़ा हुआ, वह कई महिने बीमार
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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