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________________ सत्यसमाजकी स्थापना [२३१ समभाव के ये विचार दो वर्ष तक पकते रहे और अन्त में उनने सत्य-समाज का रूप धारण कर लिया। सामाजिक आन्दोलन की सफलता के लिये एक संगठन की आवश्यकता थी, इधर स्वतंत्र विचारों को मूर्तिमान रूप भी देना था इसलिये सत्य-समाज सरीखे एक समाज की स्थापना करना आवश्यक होगया । एकदिन रातभर बैठकर सत्य-समाज की रूपरेखा बनाडाली । उसमें सदस्यों की तीन श्रेणियाँ सत्यमन्दिर आदि सभी बातों का उल्लेख था । पर इस नये समाजेक लिये ठीक नाम न सूझा । सन् १९२४ में सत्य-समाज नाम सूझा था पर फिर वह याद ही न आया । इसलिये सत्यशोधक समाज नाम से इस की स्थापना की गई। जिस रातको वह स्कीम बनी वह रात्रि भी मेरे जीवन की महत्वपूर्ण रात्रियों में से है, एक तरह से वह सब से अधिक महत्वपूर्ण है पर उसकी भी तिथि याद नहीं आरही है । हां, यह योजना भाद्रपद शुला ८ वीर संवत् २४६० या १६ सितम्बर सन् १९३४ के 'अंक में प्रकाशित हुई इसलिये यही दिन सत्याप्टमी के रूपमें पर्वदिन मानलिया गया। योजना के प्रकाशित होने के चार छः दिन पहिले ही वाशी के सेट चुनीलालजी कोटेचा का पत्र आया था कि एक नये समाज की आवश्यकता आप नया समाज स्थापित करें तो बड़ी कृपा हो। मैंने उन्हें लिया कि नये समाज की योजना छपरही है दो तीन दिन में आपके पास पहुंचेगी। योजना जब पहुँची तब उनने लिखा शि सत्य-शोधकसमाज तो एक दक्षिण भारत में कोई पमरा नाम रखिये। बाकी योजना बहुत अच्छी है।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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