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________________ २२.४ ] आत्मकथा . उनका भाव में अच्छी तरह समझ गया । मेरे सब विचारों को जानने की उत्सुकता और उस. उत्सुकता से पैदा होनेवाला आकस्मिक, विघ्न, का. भय,, उनकी उतावली का कारण था । पर पांच वर्ष की वाट देखने के मेरे वहाने में जो कारण थे उनका उल्लेख. मैं न कर सका । पहिली बात यह थी कि मैं जानता था कि इन विचारों के प्रगट कर देने पर मुझे फिर आजीविका से हाथ धोना पड़ेगा इसलिये सोचता था कि पांच वर्ष और निकल जॉय तो मैं आर्थिक दृष्टि से इतना समर्थ होजाऊंगा कि नौकरी किये विना अपनी गरीवी गुजर सकूँगा। . . . दूसरी बात यह थी कि आज तक मैंने जितने आन्दोलन किये थे उनमें पूरा निर्णय किये बिना कोई बात नहीं लिखी थी इसलिये..अधिक से अधिक और ऊँचे से ऊंचे. विरोधियों के रहने पर भी में अपनी वातपर दृढ़ रह: सका था, अन्ततक उसका समर्थन भी कर सका था । अब अगर.ऐसी बातें लिखने लगूं जिन्हें कल बदलना पड़े तो इससे कुछ घमंड को ठेस पहुंचती थी। ... . : यद्यपि,में परिवर्तन करने.. और सत्य. को ग्रहण करने को तैयार था पर अनेक कारणों से ऐसा घमंड आगया था कि जो ‘सत्य कल दूसरों के सुझाने से मानना पड़ेगा उसे कुछ समय ठहर कर मैं ही.क्यों न खोज निकालूं । इस प्रकार आज तक जमाई हुई धाक की रक्षा, यशोलोलुपता अहंकार आदि अनेक कारण ऐसे थे कि मैं पूरा विचार किये बिना लेखमाला लिखने को तैयार न था। ... , यद्यपि ये दोनों कमजोरियाँ. मैं श्री छोटेलालजी से. न कह सका फिर भी मैंने स्वीकारता दे. दी । क्योंकि उनकी यह बात
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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