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________________ १९६ ] . आत्म-कथा जैनजगत ने एक पर एक अनेक आन्दोलन किये। उसमें सुधार सम्बन्धी सभी बातों पर चर्चा रहती थी। पर सत्य के लिये अच्छे से अच्छे सहायकों की पर्वाह न की जाती थी। इससे जैन जगत की आर्थिक अवस्था सदा संकटापन्न रही पर यही उसका जीवन था और इससे उसकी धाक प्रायः सभी जैन पत्रों से अधिक थी। तर्क वितर्क करना शास्त्रीय चर्चा करना आलोचना करना मेर। काम था और अच्छे से अच्छे समाचार दृढ़ निकालना प्रकाशक जी का काम था । इस तरह जैनजगत प्रेम से या द्वेष से सव की आँखों पर चढ़ गया था। जैन-जगत आर्थिक संकट में रहने पर भी अपनी नीति से पीछे हटकर किसी भी तरह के प्रलोभन में न फंस सकता था, इसकी परीक्षा एक बार यों हुई कि एक श्रीमान जी ने कहलाया कि यदि आप जैनजगत में विधवा-विवाह के पक्ष में कुछ न लिखें तो.हम जैनजगत का सारा घाटा उठाने को तैयार हैं । इसमें संदेह नहीं कि जैनजगत उस समय काफी आर्थिक संकट में था फिर भी मैंने कहा- अगर किसी से कहा जाय कि तुम लकवा से पीड़ित हो जाओ तुम्हारे लिये खाने-पीने का प्रबन्ध हम कर देंगे, तो ऐसी • सहायता कौन चाहेगा ? इसकी अपेक्षा मरना क्या बुरा है । जैन जगत ऐसी किसी शर्त पर कोई सहायता नहीं चाहता । यह थी जैनजगत की नीति । : वर्ष दो वर्षमें कोई नया आन्दोलन खड़ा करना और उसको अच्छी तरह चलाना और उसकी उचितता सिद्ध कर उस मामले में विरोधियों को हटाकर ही दम लेना, जैनजगतःकी विशेषता थी।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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