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________________ १९२ ] आत्मकथा ज्यादा ही थी : इसका एक ही उपयोग सूझा करता था कि अगर अधिक रुपया होगया तो नौकरी से स्वतन्त्र होजाऊंगा और फिर बिना किसी भय या संकोच के अपने विचारों का प्रचार करूंगा । और इसी कारण धनसञ्चय की तृष्णा पीछे पड़ी हुई थी। बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि एक क्रान्तिवाद को लगानेवाली यह कायरता थी कि जीविका की तरफ से कहीं निराश्रित न हो जाऊँ । पर इसे कायरता समझू या सतर्कता, यह अभी भी नहीं कह सकता ! संभवतः कायरता. ही है. पर जी चाहता है सतर्कता कहने को। :: :. . . ... . ___महावीर विद्यालय में पौने तीन घंटे काम करना पड़ता था। कालेज में प्रोफेसर लोगों को करीब इतना ही काम करना पड़ता है और वेतन मुझ सेढुंगुना तिगुना चौगुना तक मिलता है, यह भी मैं समझता था कि मेरा काम प्रोफेसरों के काम से खराब नहीं है फिर भी ऐसा लगा ही करता था कि मैं कुछ ज्यादा ले रहा है। . सरकारी कर्मचारियों के बड़े बड़े वेतनों के विषय में यही खयाल था और बहुत कुछ अव भी है कि वह तो विदेशी शासन को भारत में जमाये रखने के लिये शिक्षित भारतीयों को दी जानेवाली लांच है । उसका योग्यता से कोई सम्बन्ध नहीं है । ऐसे ऐसे सरकारी कर्मचारी हैं जिनको हजार हजार दो दो हजार रुपया महीना वेतन मिलता है पर जिनकी योग्यता उनसे बहुत कम है जिन्हें आज बाजार में मुश्किल से पचास रुपये मिलपाते हैं । इसका एक कारण तो भाग्य या अकस्मात' कहा जा सकता है पर दूसरा और मुख्य कारण सरकार की खासकर विदेशी सरकार की राजनीति है.।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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