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________________ बम्बई में आजीविका [ १९१ भीतरी दृढ़ता का परिचय मिला दुसरा यह कि विरोधियों ने सोचा था कि आजीविका के क्षेत्रमें इन्हें गिरादेने से दूसरों पर अच्छी धाक जमेगी और उत्साह भी ठंडा होजायगा सो मेरी स्थिति बिगड़ने के बदले सुधरी इसलिये न तो दूसरों पर कोई बुरी छाप गिरी न मेरा उत्साह ठंडा हुआ । यही कारण है कि मेरे बाद जिन विद्वान को इन्दोर विद्यालय में रक्खा गया वे भी विजातीय-विवाह के समर्थक निकले। कुछ समय बाद उनने अपने विचार प्रकट भी किये किन्तु फिर कोई कल न कह सका । सबने समझ लिया कि 'कूपहि में अब भांग परी है। खैर, प्रारम्भ की कुछ कठिनाई के बाद आमदनी बढ़ती ही गई । बम्बई में चार वर्ष रहने के बाद मूर्तिपूजक श्वे. सम्प्रदाय के महावीर विद्यालय में मुझे १३५) रुपये महीने पर काम मिल गया । इसलिये माणिकचन्द ग्रन्थमाला और दि. जैन वोडिंग का काम छोड़ दिया । जैनप्रकाश में लेख देता रहा और एक घंटा श्राविकाश्रम में भी पढ़ाता रहा इस प्रकार २००) महीने की आमदनी हो गई। कुछ समयबाद १५) वेतन विद्यालयकी तरफ से और बढ़ा दिया गया। कुछ रुपया वेंक में भी जमा हो गया था उसका व्याज भी मिलता था इस प्रकार खासी आमदनी होगई । अव तो मनमें कभी कभी यह विचार तक आने लगा कि इतने रुपयों का करना क्या ? जीवन सादा था, व्यसन कोई था नहीं, सिनेमाघरों के पास में रहते हुए भी महीने दो महीने में एकाध दिन सिनेमा की बारी आती थी, स्वच्छता प्रिय और शृंगारप्रिय होनेपर भी कंज़स था इसलिये दो सवा दो सौ रुपये महीने की आमदनी जरूरत से
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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