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________________ विजातीय विवाह: आंदोलन [ १८३ डालते हैं यह उनमें स्वाभाविक कमजोरी होती है, इससे वे दूसरों का नुकसान जितना करते हैं उससे अधिक वे अपना नुकसान करते हैं, इसलिये उन पर दया ही की जा सकती है । : : विद्यालय के मन्त्री जी ने कहा- अभी तक कुछ नहीं बिगड़ा है आप आंदोलन बन्द कर दीजिये। मैंने मुसकराते हुए कहा अब तो आंदोलन मेरी मौत के साथ ही बंद होगा रोटी छिनने से वह बन्द नहीं हो सकता । इतना कहकर मैंने त्यागपत्र लिख दिया जिसमें एक महीने के बाद काम छोड़ने की सूचना थी । i * ' + पिताजी बहुत घबरा रहे थे, उन्हें चिन्ता थी कि पुरानी मुझे भी चिन्ता 1 · गरीबी के दिन फिर न लौट आयें, थी पर मैंने पिताजी को काफी धैर्य बँधाया और कहा - आमदनी ज्यादा हो या कम, पर पेट में उतना ही जाता है जितना उसमें बनता है । सो. रूखा-सूखा उतना तो मिल ही जायगा । बाकी अधिक पैसे का उपयोग तो अपनी इज्जत बढ़ाने में है, सो अगर इस प्रकार सत्य के 'लिये कंगाल बनने में भी इज्जत हो तो अमीरी की क्या जरूरत ?" w नौकरी छूट, जाने पर मुझे आशा थी कि मैं पानीपत चला : जाऊंगा, वहां बात भी कर आया था पर यह नहीं समझा था कि दुनिया भरे को भरती है - खाली को नहीं । जब मैं आजीविका से लगा था तब सभी बुलाते थे पर आज जब नौकरी छोड़ चुका हूँ और मुझे उसकी खास जरूरत है तब कोई पूछनेवाला नहीं । एक संस्था से अलग होने के कारण सभी संस्थावाले डर गये । तिलोकचन्द्र हाइस्कूलवाल ने भी कुछ बात नहीं पूछी, पानीपत वालों ने तो - 1 ; . ·
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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