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________________ विजातीय विवाह आंदोलन [ १७९ तय किया था कि उसके पहिले हरे हरे रंग के कई वमन हुए इललिये फिर रुकना पड़ा। दिन के १२ बजे चमन बन्द हुए इसलिये दो बजे की गाड़ीसे रवाना हो गया और तार भी दिला दिया । देहली पहुंचा कि समाज में हलचल मच गई । शास्त्रसभा में खूब भीड़ होने लगी । विरोधी लोगों के मुँह से भी निकलने लगा कि विचार चाहे जैसे हो लेकिन विद्वत्ता में सन्देह नहीं । दूसरे दिन से मेरे डेरे पर बहुत से लोग आने लगे और विरोधियों दूत भी । विरोधी इसलिये आते थे कि मेरी युक्तियाँ ले जाकर अपने दल के पंडित को विचार की सामग्री दें । मेरे मित्रों ने चेतावनी भी दी पर मैंने कहा इन युक्तियों से वे सँभलेंगे तो क्या किंतु टण्डे पड़ जायँगे। हुआ भी ऐसा ही । के । : एक दिन मेरा यहाँ व्याख्यान भी रखा गया । उसमें मैंने जैनधर्म की उदारता बतलाते हुए कहा था कि जैनी बनने का हरएक को हक है चाहे वह भंगी, चमार या पशु ही क्यों न हो । जैनशास्त्रों से इस बात को प्रमाणित भी किया । कुछ दिन बाद विजातीयविवाह के समर्थन में मेरा व्याख्यान रक्खा गया । जिस दिन इस व्याख्यान का नोटिस बँटा उसी दिन से काफी क्षोभ होने लगा | व्याख्यान को रोकने की काफी कोशिश की गई । दिनमें मुझे कुछ विरोधियों ने धमकी भी दी । व्याख्यान के पहिले इमारत का ताला लगादिया गया । मेरे मित्रों ने उसे किसी तरह हटाया या तोड़ा । पर इस परिस्थिति को देखकर मेरे बहुत सहयोगियों को अनुपस्थित रहने के लिये बीमार बन जाना
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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