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________________ . १७८ ] आत्म-कथा " - विद्यालय किसी भी हालत में अलग नहीं कर सकता । खैर, अब मैं काफी निश्चिन्त होगया और तिलोकचन्द हाइस्कूलवालों को कह दिया कि अब मैं हुकुमचन्द विद्यालय में ही काम करूंगा । . खैर, पर्युषण के दिन आये । मुझे दिल्लीवालों ने निमन्त्रण दिया और इधर इन्दोर में मेरे विरोधी विद्वानों का आगमन हुआ । इन्दोर में उन विद्वानों से जमकर चर्चा हो इसलिये कुछ जी तो ललचाया पर दिल्लीवालों को स्वीकारता दे चुका था और वहां के जैन समाज में इस विषय में खूब चहलपहल भी मच गई थी । मेरे समर्थकों ने चर्चा के लिये खुली चुनौती दे रक्खी थी इसलिये दिल्ली जाना जरूरी था । · 1 • यह दिल्ली जाना मेरे क्षुद्र जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना है । इसीसे मुझे अपनी सहिष्णुता आदि का परिचय मिला; दिल्ली . में जो कुछ हुआ इसका वर्णन विस्तार से डायरीमें लिखा है | यहां उसका सार देदिया जाता है । - . इन्दोर से दिल्ली के लिये निकला कि कुछ कुछ तबियत खराब हो गई । रतलाम में आधी रातस तबियत और खराब हो गई, सुबह एक पर एक वमन होने लगे, दिन भर में करीब २५ से ऊपर वमन हुए। इसलिये दिल्ली को बीमारी का तार दिया, रात में चमन कुछ कम हुए पर शरीर एकदम शिथिल हो गया । इच्छा हुई कि कल इन्दोर लौट चलूं, वहाँ भी पंजी से मिडने का अच्छा अवसर है पर फिर सोचा कि दिल्ली के चैलेंज का · क्या होगा ? इसलिये हर तरह दिल्ली पहुँचना ही तय किया । रात भर तवियत कुछ ठीक रही थी इसलिये सुबह मेल से जाना
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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