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________________ डायरी के कुछ पृष्ठ [ १७१ से परे रहना चाहिये । जो सत्य अँचे वही करे और अपना जीवन सदाचार पूर्ण बनावे, रूढ़ियों का गुलाम न रहे । [आश्चर्य है कि जब दस वर्ष बाद सन् ३४ में सत्यसमाज की स्थापनाकी गई तब यह याद ही न आया कि ७ जुलाई १९२४ को भी ऐसे विचार आये थे और यह नाम सझा था । इसलिये सत्यसमाज की स्थापना के समय नाम के लिये बड़ा विचार करना पड़ा, 'सत्यसंवकसमाज' आदि नामों में से 'सत्यशोधकसमाज' नाम रक्ख। । बाद में इस नाम का जब दूसरा समाज दक्षिणप्रान्त म मालम हुआ ता नाम में कम से कम परिवर्तन करने के लिहाज से शोधक शब्द निकालकर 'सत्यसमाज' नाम रहने दिय! । इस प्रक र विना जाने ही यह नाम ७ जुलाई १९२४ की मानसिक कल्पना से मिलगया] इन्दोर २३ जुलाई १९२५ इस जीवन में तो बहुतसी त्रुटियाँ रह गई । आशा होती है कि शायद दूसरे जन्म में मेरी त्रुटियाँ दूर हो इसलिये दूसरे जन्म के लिये बड़ी उत्सुकता है । यद्यपि मुझे आशा है कि इस जीवन में भी बहुत काम कर सकूँगा इसलिये मरने को जी नहीं चाहता फिर भी मरना उतना भयंकर नहीं मालूम होता जितना मालूम होना चाहिये । - इन्दोर २४ जुलाई १९२५ आज दिनभर ऐसे ही विचार आते रहे कि गृहस्थ जीवन छोड़कर गृहत्यागी हो जाऊं, अगर जीवनभर के लिये न हो सकू तो १०.५ वर्ष के लिये हो जाऊं । पास में पांच रुपये से अधिक न रक्खू । दो कम्बल और दो खादी के वस्त्र रक्खू । जातिपाँति का विचार छोड़कर भोजन करूं, सखे सूखे की पर्वाह न करूं इस तरह अपने स्वतन्त्र विचारों का प्रचार करूं । जैन समाज में ही नहीं किन्तु भारत भर में धार्मिक और सामाजिक क्रान्ति मचा हूँ ।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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