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________________ १५८ ] आत्म कथा रूढ़ि-विरोध इन्दोर में ज्यों ज्यों मेरी सुधारकता पनपती जाती थी त्योंत्यों सुधारको कार्य-परिणत करने की मेरी इच्छा बलवती होती जाती थी। कुटुम्बमें कोई नहीं था इसलिये और सुधारों को कार्यरूप में परिणत करने का अवसर ही नहीं था पर पत्नी के वेषभूषा में कुछ परिवर्तन करना, पर्दा हटाना स्वास्थ्य के लिये शामको घूमने ले जाना आदि सुधार कार्य-परिणत करना चाहता था । पर इसके लिये पत्नी से आग्रह कभी नहीं किया एक दिन गहनोंके लिये आग्रह किया पर उसका परिणाम अच्छा न हुआ इसलिये पत्नी के सामने सुधारक साहित्य रख कर और चर्चा करके सुधार की वाट देखने लगा । धीरे धीरे उसको मेरी बातें समझ में आने लगी और परिवर्तन भी शुरू हुआ। गुजराती ढंग की वेषभूषा आने लगी । जाति की कुछ स्त्रियों ने टोका भी कि 'वाई, देश छोड़नापर भेष (वेष) न छोड़ना' पर पत्नी ने उसकी पर्वाह न की। इन्दोर में तो मारवाड़ी सम्यता है जोकि वेषभूषा की दृष्टि से काफी पिछडी हुई कही जासकती है । वहाँ स्त्रियों-स्त्रियों में भी पर्दा किया जाता है । एक दिन मैंने पत्नी से कहा कि चूंघट निकाल कर आज मेरे साथ घूमने चलो । शामको हम लोग घूमने निकले तब सब को बड़ा आश्चर्य हुआ । दस पन्द्रह दिन कुछ खुस-स्नुस फुस-फुस हुई । पर मैंने इसकी पर्वाह नहीं की, फल यह हुआ कि दूसरे लोग भी अपनी पत्नी को लेकर घूमने जाने लगे । मैंने अनुभव किया कि किसी बात को बकते रहने से ही काम नहीं होता उसे क्रियापरिणत करना चाहिये । साधारण लोग ही नहीं बड़े बड़े सुधारक
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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