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________________ इन्दोर में {१४५ जाना लक्ष्य था सो बन गया था । राजनीत अगर सीखी थी. तो इतनी ही कि असहयोग और सत्याग्रह हुआ कि अंग्रेज भागते बाजार नजर आये । राजनैतिक बलाबल क्या है इसका ज्ञान बहुत पीछे हुआ । सत्याग्रह और असहयोग के आन्दोलन देश में जागरण पैदा कर सकते हैं उसे स्वतंत्र नहीं कर सकते इसके लिये कुछ और करना चाहिये यह मांधी-सी बात. बहुत दिनों बाद समझा। सामाजिक सभाओं में जातीय संभा में अच्छी तरह भाग लेना भी यहीं शुरू हुआ। इसके पहिले तो यों ही तमाशबीनसा बनकर परवार-सभा में गया था । इन्दोर आकर परवारबन्धु का सम्पादक बना, कई वर्ष रहकर और सभा के काम में भाग लेकर यही समझा कि ये सभाएं नये लोगों के नेतृत्व खरीदने की दुकानें हैं इनसे बहुत कम काम हो सकता है। अर्थात् मुहर देकर पैसे का काम हो सकता है । प्रतिनिधितंत्र की या प्रतिनिधितंत्र का ढोंग करनेवाली सभाओं से सामाजिक क्रान्ति नहीं हो सकती। एक वार की बात है कि सोनागिर में परवार-सभा का. अधिवेशन हो रहा था । सभा के सञ्चालक जैनहितैषी आदि कुछ पत्रों के बहिष्कार का प्रस्ताव लाना चाहते थे । पर मैंने विरोध किया । मेरा कहना था कि “जब तक वे पत्र जैनधर्म की. या महावीर स्वामी. की निन्दा नहीं करते, जैनधर्म और जैनसमाज को ..अपमानित करना उनका ध्येय है यह साबित नहीं
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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