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________________ १४४ ] 28 आत्म-कथा राजनीति में इन्दोर में मैंने सार्वजनिक क्षेत्र में भी प्रवेश करने की कोशिश की । उन दिनों असहयोग का प्रवाह चारों तरफ बहने लगा था उसमें मैं वहा तो नहीं पर तैरा अवश्य । राजनीति का ज्ञान तो खाक़ नहीं था कुछ वक्तृत्व ज़रूर था, लच्छेदार भाषा में दत्तमन्दिर तथा थियेटर में भाषण हुआ करते थे । एक सभा बनाकर मुहल्ले मुहल्ले में भी भाषण करने का कार्यक्रप रक्खा । सरकार को कोसना वस इतनी ही राजनीति समझता था । वक्तृत्व का जीवन से बहुत ताल्लुक है इस ज्ञानपर कितनी उपेक्षा श्री यह बात इसी से मालूम हो सकती है कि बहुत दिनों तक स्वदेशी पर व्याख्यान देने पर भी विदेशी वस्त्र पहिनता था । दो तीन महिने बाद विदेशी वस्त्र का त्याग कियारियासत के शासन के विरुद्ध भी काफ़ी आग उगलना शुरू कर दिया था हालाँकि तब तक शासन के विषय में समझता- कुछ नहीं था | व्याख्यान में पकड़ा न जाऊं इसलिये इन्दोर नरेश को शासन की बुराइयों से मुक्त रखकर या थोड़ी बहुत उनकी कभी तारीफ करके नौकरशाही को कोसता था । कई बार रियासत ने मुकदमा चलाने का विचार भी किया पर शब्दों की पकड़ में न आने से मुकदमा न चल सका । कुछ ऐसे मित्र मिलगये थे जिनका शासक वर्ग से काफ़ी ताल्लुक था और जो मुझे इन बातों की सूचना किया करते थे । # : . • उस समय राजनीति का कुछ भी ज्ञान न था सिर्फ गाल बजाना आता था, किसी तरह इन्दोर का प्रसिद्ध वक्ता बन . . ·
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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