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________________ शैशव [ ५ 1 दिया । मैंने कहा- मैं मट्टा नहीं पीता । पिताजीने कहा- पी तो सही, अब यह दूध हो गया है। मैंने पिया और चकित होकर पिताजी से पूछा, 'महा दूध कैसे हो गया ?' पिताजी बोले गर्म करने से । उस दिन से मैं समझने लगा कि मट्टा गरम करने से दूध बन जाता है । यह वैज्ञानिक अन्ध-विश्वास कब नष्ट हुआ इसका स्मरण नहीं है । इसलिये प्रायः गुड़ गुरआई दूं ? मैंने उन दिनों गाँवों में शक्कर का कम प्रचार था और मेरे गरीब घर में तो और भी कम, इस लिये मेरे घर में गुड़ का ही उपयोग होता था । पर गुड़ मुझे अच्छा न लगता था न खाता था । एक दिन माँ ने कहा- क्यों रे, यह सोचकर 'हाँ' कह दिया कि गुरआई गुड़ से भिन्न कोई चीज़ होगी। मुझे क्या मालूम कि गुरआई यह सामान्य शब्द है जो कि गुड़ शक्कर आदि सभी मीठी चीज़ों के लिये प्रयुक्त होता है | इसलिये माँ ने जब गुड़ परोसा तब यह सामान्य- विशेष - तत्त्व मेरी समझ में न आनेसे मैं भौंचक्का सा रह गया । दूसरी । खेलने के लिये सुपलिया w 1 कहा - बसोरिन को एकबार मैंने माँ से कहा कि मुझे ( छोटा सूपा ) मँगादे | माँने पिताजी से कोई पुराना कपड़ा देकर सुपलिया बनवा लाना । दो तीन दिन बाद सुपलिया आ गई । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि कपड़े की सुपलिया कैसे बन गई? कपड़े के बदले में सुपलिया आ गई है यह बात मैं न समझ सका। मैं तो यही समझता रहा कि कपड़े की - सुपलिया बन गई है।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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