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________________ ४ ] आत्म कथा । में माना जाता था । परन्तु धीरे धीरे सब लोग मर गये सिर्फ मेरी बुआ [ पिताजी की बड़ी बहिन ] और उनके जेठ का पुत्र बच रहा । साहूकारी सब डूब गई । ऋण रह गया, दूकान में आग लग गई या छूटने के लिये लगादी गई | बुआ के पास रहने का मकान -- जो काफी बड़ा था और कुछ स्त्रीधन रह गया । फिर भी वे मेरे पिताजी को मन वचन से और यथाशक्ति धन से सहायता करती थीं। कभी कभी शाहपुर आती थीं। उनका मुझपर बड़ा प्रेम था | शाहपुर में मेरा शशवकाल ही व्यतीत हुआ था फिर भी मुझे अनेक बातों का स्मरण हैं । वहां का मंदिर, दौड़-दौड़ कर रेलगाड़ी देखना, वरसात में वालूके घर बनाना आदि अभी भी याद हैं । कुछ ऐसी बातें भी याद हैं जो मूर्खता नहीं किंतु वालोचित भोलेपन का परिणाम है। इससे वालमनोवृत्ति का पता लगता है । बालक एक तरफ़ बड़े तार्किक होते हैं तो दूसरे तरफ श्रद्धालु भी होते हैं । उनकी श्रद्धा का दुरुपयोग न करना चाहिये न तार्किकता का दमन करना चाहिये । ख़ैर, मैं शैशव के हास्यास्पद संस्मरण तो सुना दूं । एकवार मेरे पिताजी दूध लाये । मेरी आदत थी कि दूध देखा और मुँह लगाया । इससे बचने के लिये उनने कह दिया कि यह दूध नहीं मठ्ठा है । उस समय अविश्वास करने लायक वुद्धि पैदा नहीं हुई थी इसलिये मैंने नाक सिकोड़ ली। थोड़ी देर बाद जब वह गरम किया गया तव पिताजी ने मुझे पीने को
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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