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________________ सिवनी में कुछ महा १२१ ' जन्म कैसे हुआ ये आश्चर्य इस आश्चर्य के आगे फीके पड़जाते हैं कि मुझमें सुधारकता कैसे आई ? निमित्त बहुत ही साधारण था, एसा मालूम होता है कि सुधारकता मुझे सौभाग्यशाली बनाने के लिये कोई वहाना ही ढूँढ रही थी, अथवा भक्त देवी को नहीं, देवी भक्त को ढूँढ रही थी। वात यों हुई-एक दिन मैं सागार-धर्मामृत पढ़ा रहा था उसमें कन्यादान का प्रकरण निकला निस्तारकोत्तमायाथ मध्यमाय सधर्मणे । यहाँ साधर्मी को कन्या देने का विधान था । यद्यपि यह श्लोक .. मैं बनारस में भी पढ़ा चुका था पर तब तक काललब्धि ही नहीं आई थी या सत्येश्वर की कृपा नहीं हुई थी या असंख्य जन्मों का सञ्चित पुण्य उदयोन्मुख नहीं हुआ था इसलिये तव तक मुझे इस श्लोक में कुछ न सूझा । उसदिन यह बात खटकी कि साधर्मी को कन्या देने का विधान क्यों है, सजाति को क्यों नहीं ? प्रचलित रीति के अनुसार तो यहाँ 'सधर्मणे के समान . 'सजातये' पद डालना भी ज़रूरी था । . बहुत ही मामूली प्रश्न था पर इस प्रश्न ने मेरे जीवन में उथलपुथल मचादी । पढ़ाकर मैं आया तो रात भर नींद नहीं आई। उपर्युक्त पद्यांश तो निमित्तमात्र था, मेरी विचार-धारा तो चारों तरफ फैली । विवाह का धर्म से क्या सम्बन्ध है ? धार्मिक दृष्टि से नर और नारी में क्या भेद है, किसी कार्य को पुण्य या पाप कहते समय उसे किस कसौटी पर कसना चाहिये ? इन विचारों में मैं रातभर
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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