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________________ बनारस में अध्यापक [ १०९. मुझे अपने पर बड़ा आश्चर्य होता है । मन से वचनस या. तनसे . किसी के ऊपर. आक्रमण करने की यहाँ तक कि स्वयं प्रेरित. हो. कर किसी को समझाने की भी मुझ में रुचि नहीं है. फिर न जाने । वह कौनसी शक्ति है जो मेरी इस रुचि को कुचलती रहती है और मानों इण्टर पर हण्टर लगाती हुई 'मत वैठ चलता रह! त बैठ चलता रह' का गर्जन करती रहती हैं। पिछले बीस वर्षों से एक के बाद एक नये आन्दोलन उठाने, और पागल की तरह उनके पीछे पड़ने यहाँ तक की उनके लिये मित्र दोस्तों की, धन पैसे की या स्वास्थ्य की भी पर्वा न करने का पागलपन जो मैं कर रहा हूं, एक दिन भी अपने को निश्चिन्त नहीं बनासका हूँ लेखनी से कागज़ को रंगकर या मुँह से लोगों को पीटकर जो जनसमाज में क्षोभ पैदा करता रहा हूं उस परिस्थिति का जब अपनी रुचि से मिलान करता हूं तब ऐसा मालूम होता है कि कोई दिव्य या राक्षसी शक्ति किसी पहाड़ को मार मार कर दौड़ा रही है । जिससमय ये पंक्तियाँ लिखी जा रही हैं उस समय में अपने इस जीवन को देखकर ही आर्य के समुद्र में गोते लगा रहा हूं। सचि कहती है "चुप बैठ, किसके लिये तू क्या कर रहा है मनुष्य हो कर मशीन की तरह काम करके तू क्या पायगा ! . तने भगवान का दर्शन किया है, अब दुनिया पर नज़र डालकर अपनी आँखें अपवित्र क्यों कर रहा है ? जंगल में चला जा, जो तेरे साथ तादाम्य स्थापित करना चाहें उन को भी साथ लले और . पवित्र आनन्द का स्वाद चपाता रह, आदर सत्कार यश आदि सब . .यूट है, बड़े बड़े . महात्मा भी जीवनमर . निरादर. ही पाते रहे हैं, .
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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