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________________ खेचताणमां न पडवू. योग्य जीव होय ने कदापि क्रिया तेना गच्छना आचार प्रमाणे करता होय, पण बीजा आप आपणा गच्छनी रीते प्रमाण करता होय, तेनी निंदा करता न होय तो आपणे पण तेनी साथे मध्यस्थ रहे, पण खेचाताण करवी नहि. खेंचाताणथी घणा विकल्पमा पडी जq थाय छे ने धर्म छे ते निर्विकल्पदशामां छे. वास्ते जे जे काम करवू तेमां निर्विकल्प दशा थाय एवी क्रिया करवी. सोबत करवी तेमां पण स्वगच्छी होय ने तेनी सोबत करवाथी विकल्प थतो होय ने परगच्छी होय ने तेनी सोबतथी निर्विकल्पदशा थती होय तो तेनी सोबत करवी. हरेक प्रकारे राग द्वेषनी प्रकृति ओछी थाय तेम करवं. वादविवाद करवाथी सामाने गुण थाय अथवा जैनशासननो जय थाय एबुं होय तो करवो पण फोगट कंठशोष थाय एवो वाद करवो नहि. हरिभद्रसूरि म. हाराजे अष्टकजीमां एवो वाद निषेध्यो छे. वास्ते जेमा सामा जीवने अथवा आपणा आत्माने गुण थाय एवं होय ते वाद, चर्चा के धर्मकथा करवी ने आ गुणस्थानवाला एम ज करे. आत्मधर्मनो लाभ थाय तेमां ज काल काढे. संसारमा रह्यो छे, पण संसारी सुखने वेठ रूप जाणे छे परंतु तेमां प्रसन्न थतो नथी. जे जे संसारी काम करे छे तेमां भावे छेजे आ कृत्य म्हारे करवा योग्य नथी. पण पूर्वे कर्म बांध्यां छे तेथी एमा हुँ बंधाइ रह्यो छु. ए उपाधिथी निकली शकातुं नथी; पण ज्यारे राग द्वेषनी प्रकृतिथी मूकाइ आ संसार जालथी निकलीश ने म्हारा जाणवा देखवाना स्वभावमा वर्तीश तेज म्हारुं काम छे. हाल पण जे जे शुभ अशुभ कर्मना उदय थाय तेमां म्हारे लीन थर्बु ए म्हारो स्वभाव नथी. हुँ ज्यां सुधी संसारमा रह्यो छु. त्यां सुधी म्हारे म्हारा खभावमा रही उ. दय आवेली किया करवी छे. एमां कंइ म्हारे म्हारं मानवानुं नथी. आवो विचार पण करवो पडतो नथी. सहजे समकितना प्रभावथी ज पोते लीन थता नथी. पुदलनो तमासो जुए छे ने पोते पोताना ज्ञान, दर्शन चारित्रमा ज, मन थइ रह्या.छ. ए गुणमां ज आनंद माने छे. संसारी आ ।
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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