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________________ जीव जणाय नहि. जेम बुद्धिथी अग्नि उत्पन्न कर्यो; पण ककडा करवाची अग्नि देखायो नहि. तेम जीव ककडा करवाथी देखाय नाह. ज्ञानवान् पुरुषना ज्ञानथी जीव जणाय. परदेशी राजाए प्रश्न कयु जे-आ दृष्टांत बताव्यां पण प्रत्यक्ष हाथमां झालीने जीव बतावो तो हुं मानु. केशी महाराजे उत्तर आप्यो जे आ झाडना पानडां शाथी हाले छे ? कोइ देवता प्रमुख हलावे छ ? परदेशी राजाए कहुं जे वायुथी हाले छे. त्यारे केशी महाराजे कडं जे-पवनने तुं देखे छे ? राजाए कयुं जे हुं नथी देखतो. सारे गुरुए कह्यं जे-जेम पवन नथी देखतो; पण माने छे, तेम जीव देखातो नथी; पण लक्षणथी जणाय छे ने केवलज्ञानी महाराज प्रत्यक्ष देखी शके छे, बीजा देखी शकता नथी. एवी युक्तिथी केशी महारा. जना धर्मोपदेशथी परदेशी राजाए नास्तिक मत छोडी दीधो ने जीव अ. जीवादि नव तत्वनी श्रद्धा करी श्रावकनां व्रत लीघां. आ मुजबना घणी एक रीते नास्तिकवाद शास्त्रमा निराकरण करेला जोया छे, सांभल्या छे, तेथी प्रभुना मार्ग तथा आगम उपर पूर्ण आस्ता थइ छे. स्वप्नामां पण संशय नथी, ते आस्तिक्यता लक्षण जाणवू. ए पांचे लक्षण सम्यदृष्टिने होय. ते विचारवां अने न होय ते प्रगट करवानो उद्यम करवो. मुख्य उद्यम ए छे के हरेक धर्मनी वातो सांभलीने आत्मामां विचार करवो के म्हारामां आ गुण नथी माटे प्रगट क. रवानो उद्यम करूं. पण सम्यकदृष्टिनी धर्म सांभली पर उपर नजर न जाय के अमुक निर्गुणी, ए तो जे जे पुरुषमा गुण छे ते ग्रहण करे. अन्यदर्शननी पण सारी रीत होय ते निंदे नहि. ते उपर उपाध्यायजीए कह्यु जे ' दर्शन सकलना नय आहे' एटले जे जे दर्शनवाला जे जे नये धर्म करता होय, ते नय विचारथी ते जाणी ले ने पोते पोताना साते नयना विचारमा रहे. वली जैनदर्शनमां पण पंचमकालना प्रभाव कदापि क्रिया फेरफार देखाय; तो पण मध्यस्थदृष्टि राखवी पण एकांत
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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