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________________ > ( ७७ क्रोध, मान, माया, लोभ, समकितमोहनी मिश्रमोहनी ने मिथ्यात्वमहनी ए सात प्रकृति, सत्ता, बंध, उदय ए त्रणे प्रकारे नाश थइ जाय छे, तेने क्षायक समकित थाय छे. ने जेने क्षयोपशम समकित थाय तेने तो ए साते प्रकृति सत्ताए तो रहे छे पण बंघमांथी टली जाय छे. ते विषे जाणवुं जे त्रण मोहनी छे तेमां बंध तो मिध्यात्वमोहनीनो छे. मिश्र, समतिमोहनीनो बंध नथी, कारण जे ए त्रण नाम मिध्यात्वमोहनीना विभाग पडवाथी थाय छे. जेम के चोखा उपर छोडां छे ते चोखानुं ढांकण छे पण छोडां निकली जाय छे तो पण छोडांनो अंश रहे छे. ते नीकले छे त्यारे तेनुं नाम कुशकी कहेवाय छे. वली कुशकी निकली गया पछी पण चोखा पाणीथी धुए छे त्यारे तेनुं नाम चोखानुं धोवण कहेवाय छे, एम जूदां जूदां थाय छे ने तेना स्वभावमां पण फरक रहे छे, तेम मिथ्यात्वना पुद्गल खसे छे त्यार पछी कुशकी रूप पुद्गल रहे छे तेनुं नाम मिश्रमोहनी कहेवाय छे, वली ते जाय छे त्यारे सहज अंश रहे छे तेनुं नाम समकित मोहनी छे, ए त्रणे प्रकृति मिध्यात्वनी छे. तेथी मिथ्यात्वनो बंध छे. ते क्षयोपशम समकितवालाने टली जाय छे. ह उदयथी अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ तथा मिथ्यात्वमोहनी, मिश्रमोहनीनो नाश थाय छे ने समकित मोहनीनो उदय रहे छे तो पण ए समकितवालाने मुक्तिनी नियमा छे एक वखत समकित फरशीने कदापि वमी गयो तो पण फरी पामशे ने अंते मुक्ति जशे वली उपशम भावनुं उपशम समकित थाय छे. ते उपशम भावनुं चोथुं गुणस्थान पामे छे, ते उपशम समकितवालाने साते प्रकृति सत्तामां रही छे पण उदय तथा बंधमां नथी, ए चोथा गुणस्थानवालाने सडसठ बोल प्राप्त थाय छे. उपाध्याय श्री जशविजयजी महाराज समकितनी सझाय करी छे, तेमां तेनो विस्तार छे, त्यांथी जाणवुं. पण तेनां पांच लक्षण इहां कहीए छीए. पहेलुं उपशम लक्षण ते - अपराधी साधे पण रोषभाव राखे नहि. कोइ माणसे गमे तेवो अपराध करचो होय ने तेनुं कंइ काम पोताना हाथमां आ
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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