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________________ ( ७६ ) थशे के, जैने धर्मने विषे राग पण नथी ने द्वेष पण नथी, एवी प्रकृतिवाला त्रीजं गुणस्थान पामे छे तेम छतां ए गुणस्थानवालाने तो मुक्तिनी नियमा कही छे; त्यारे जेटला जैनी छे तेनी तो बधानी मुक्तिनी नियमा थइ १ ए विषे जाणवुं जे मुक्तिनी नियमा तो मिध्यात्वभाव ज शरीर, धन पुत्र ते उपर म्हारापणुं वर्त्ते छे ते भाव ज्यारे टले, ने अंतरंगमां शुद्ध भाव थाय छे त्यारे थाय छे. वली आगल प्रश्न १८ मामां विशुद्ध मार्गानुसारीना गुण कह्या छे ते गुणो प्रगट थाय छे त्यारे भवनी नियमा थाय छे. ते मार्गानुसारीना गुण प्रगट थया नथी ने तेथी अन्याय प्रवृत्तिमां तो कुशल रह्या छे.ने नाम जैनी घरावे, तेथी भवनी नियमा तो न थाय; पण श्रावक नाम धरावी अन्यायनी प्रवृति करे, तेथी जैनधर्मनी लघुता थाय. तो जेनाथी लघुता थाय तेने मुक्तिनी नियमा केम थाय ? इहां कोइने शंका थशे के, जैनकुलमां उत्पन्न थयुं तो पुण्य प्रभावे कयुं छे, तेम छतां मुक्तिनी नियमा न थइ ते शुं ? ते विषे जाणवुं जे जैनकुलमां उत्पन्न थवाथी तो म्होटो फायदो छे, कारण जे उद्यम करे तो यथार्थ आमधर्म प्रगट करवानुं साधन के ने उद्यम करीने मेलवे तो आत्मानी श्र ज्ञानता टली जाय ने मुक्तिए जाय अथवा मुक्तिनी नियमा पण थाय परंतु ते जैनकुलमां जे रीते प्रभुजीए धर्मप्रवर्त्तना करवानी कही छे, ते प्रकारे करे नहि. जे अन्यायादिक निषेध करवाना कह्या छे ते छोडे नहि ने नाम मात्र श्रावकपणुं धारण करे; तो तेथी मुक्तिनी नियमा केम थाय ? ए तो पूर्वे पुण्य बांध्युं हतुं ते नकामुं गुमायुं वास्ते प्रभुनी आज्ञाए व. वाथी गुण थशे ने जेनामां मार्गानुसारीना गुणो आव्या छे ते तो त्रीजुं गुणस्थान स्पर्श करीने चोथुं गुणस्थानक पामशे ते कहीए छीए. केटला - एक जीव श्राज्ञा पाली शकता नथी; पण मनमां धर्म साचो छे एम जाण छे, जैनधर्म उपर राग वर्चे छे. ए पण परंपराए मुक्ति पामवानुं कारंग छे. वो अविरतिसमकित गुणस्थान. ते क्षायक भावे पामे तो अनंतानुबंधी
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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