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________________ १२५५) गावा तेज गुणकारी छे. यशविजय महाराजे सवासो गाथाना स्तवनमा कञ्यु छ जे " जिनपूजामां शुभ भावथी, विषय आरंभतणो भय नयी" माटे जिनमंदिरमा जइ विषयनी दृष्टि न राखवी तेज गुणकारी छे. जिन मंदिरमा परभाव छोडवा सारु जर्बु छ, ने त्यां विषनी दृष्टि-थाय सारे विषय क्यां छूटे ? माटे पुगलिक पदार्थमां दृष्टि न राखतां प्रभुना गुण संभारी प्रभुनी आज्ञा संभारी शुभ भावनी वृद्धि करवी ने पुद्गल राग घटाडवो तेज धर्म छे. प्रश्नः-१८४ पाङले भवे आयुष्य बांध्यु होय, तेज प्रमाणे पुरु थाय के कोइ रीते तूटे ! उत्तरः-शास्त्रमा आयुष्य बे प्रकारनां कह्यां छे. एक उपक्रमी अने बीजुं निरुपक्रमी. हवे उपक्रमी आयुष्य छे तेने उपक्रम जे विष शस्त्र प्र. - मुख लागवाथी आयुष्य ओर्छ थाय छे. जेम के अकाल मृत्यु कहेवाय छे. ए उपक्रमी आयुष्यवालाए जे आयुष्य बांधेटुं छे, ते शिथिल के तेथी तेने उपक्रम लागे छे. ए अधिकार तत्वार्थमा बीजो अध्याय पूरो यतां पाने १.५ मेथी चाले छे. ते बीजो अध्याय पूरो थतां सूधी के. वली विशेषावश्यकमां पण अधिकार छे. तथा आचारांगजीनी शिलांगाचार्य कृत टीका-छापेलीमा पाने १११ मे छे. बाकी पण धणी जग्याए छे. माटे उपक्रमनी सारी संभाल राखवी. कारण जे प्रायः आ कालमा. घणा माणसनां उपक्रमी आयुष्य होय, वास्ते उपक्रम लाग्युं होय तो ते. टालवानो उद्यम करवो ते सारं. मुनि महाराज पण औषधादिक करे छे. पण आखो भव ब्रत पालवां ने छेल्ली वखते व्रत दूषण लागे वा भागे । एवी दवा वापरवी ते ठीक नहि. जेम बने तेम व्रत राखवां ने रोगनो विकल्प न करवो. रोगनो विकल्प न करवाथी रोग जलदी दूर थाय के, । वास्ते पोतानो प्रात्मधर्म न बगडे एम उद्यम करवो. । इहां कोइने शंका थशे जे हरेक व्रतमां चार श्रागार छे, तेमा सव्व। समाहिवत्तियागारेणं आ आगार के वास्ते कदापी अयोग्य वस्तु त्याग
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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