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________________ पाणी ज्यां जाय, त्यां मलतुं नथी. तो ते परिसह पण वखते खमवो, पढे छे. वली सचित्त जलमां समये समये जीव उपजे छे ने विणसे छे तेनो पण आरंभ टली जाय छे. तेथी श्रावकने सचिचनो त्याग थाय छे. तेना अतिचार पण कह्या छे. वली महंत श्रावक आनंदजी प्रमुखे सचित्तनो त्याग कयों के ने आरंभ मोकलो छे. आ सचित्त त्याग ७ मी पडिमामा कयों छे अने आरंभनो त्याग ८ मी पडिमामां छे. ए अभिकार उपासकदशांगनी छापेली प्रतमा पाने ६६ मे छे. वली आठमी पडिमामां पोताने आरंभ करवानो त्याग छे, पण कराववानो त्याग नथी. प्रारंभ कराववानो नवमी पडिमामां त्याग छे. वास्ते आरंभ मोकलो के तो पण आनंदादिक श्रावके सचिचनो त्याग कयों तेम ज हालना श्रावकने पण करवा योग्य छे. प्रश्नः-१८३ श्रावक देरासरमा जाय, त्यां सारी आंगी रचेली होय तथा गायन थतुं होय तो त्यां तेणे शुंभावq ? उत्तर:-जे जे पुरुषोए आंगीना काममा पैसा खर्ध्या छे ते ते पुरुषो नी अनुमोदना करवी जे धन्य छे! संसारना काममा पैसा वापरवा बंध करी प्रभुभक्तिमा पैसा वापरे छे ! मारं चित्त क्यारे एवं थशे जे हुँ एवी प्रभुभक्ति करीश, वली प्रांगीना बनावनार पुरुषनी अनुमोदना करे में पोतार्नु काम छोडी आंगी करवामां पोतानो काल गुमावे छे. महारा भाव एवा क्यारे थशे ? वली गायन थतुं होय तो जे जे प्रभुना गुण गाय के तेमां लीन थर्बु, पण गायनना विषयमा लीन थर्बु नहि. वली दृष्टी पण प्रभु सामी स्थापवी, पण गानारना सामी स्थापवी नहि. कारण के प्रभु शिवायनी त्रण दिशा जोवानुं दशत्रीकमां वर्जवू कयुं छे. माटे प्रभु सामी दृष्टि स्थापवी, वली राग सारो गाय छे तेने सारु भावq जे मने एवं गातां आवडतुं होत तो प्रभुना गुण गायनमा हुँ पण गात. एम भाववू पण रागमां लीन न थq. बाल जीवने तो प्रभुनु जे जे प्र. शंसे छे ते ते परंपराये गुणदायक छ, पण विवेकीने तो प्रभुना गुण' :
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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