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________________ बाथी परभवां केवां दुःख भोगवा पडे १ तेनु वर्णन तो ज्ञानीमहा राज न करी शके. माटे यथाशक्ति विषयनो संकोच करवो. आ प्रमाणे 'मार्गानुसारीना पांत्रीश गुण जे पुरुषमा होय, ते पुरुष धर्मने योग्य जाणवो. अावा गुणथी मनुष्य ममकितवंत थाय छे, श्राद्धधर्म अने मुनिधर्भने पामे छे अने अंते मुक्तिसुखने मेलवे छे. . . २१ प्रश्नः-समकित ए शुं छे ? उत्तरः-समकितना घणा प्रकार छ, पण अल्पमात्र कहं छ. समकितना मुख्य प्रकार छे. १ व्यवहार समकित ने २ निश्चय समकित. तेमा व्यवहार समकित ते पागल कहेला अढार दूषण रहित ऋषभादि चोवीश तीर्थकरने शुद्ध देव तथा तरण तारण जहाज रूप मानवा. जे देव संसार थकी तस्या नथी, तेवाने देवबुद्धिए मानवा नहीं; प्रभुए मुनिनो जे मार्ग बतान्यो छे, ते मार्गे चालनारने गुरुबुद्धिए गुरु मानवा; साधु अने श्रावकनो धर्म प्रभुए जे प्रमाणे बताव्यो छे, ते धर्मने जख. रो मानवो. श्रावण तत्व उपर अडा राखवी ते व्यवहार ममकित. २ निश्चय समकित, ते प्रथम पोताना आत्मानुं स्वरूप अने पुद्गलनु स्वरू. प जाणवू. आत्मामां चेतन गुण छे अने पुद्गलमां जड गुण छे. तेथी आत्मामां सर्व पदार्थ जाणवानी शक्ति छे, पण कर्मे करीने आत्मा अवरायो छे तथा हाल संपूर्ण भाव आणी शकतो नथी. एवो निर्धार थवाथी जे जे बाह्य पदार्थों छे, तेना उपरथी मोहनो नाश करे छे. फक्त आत्मगुगमा आनंद माने छे. जे संसारी पानंद , ते सर्वे अस्थिर आनंद छे, अने तेने खरो आनंद मानवाथी कर्मबंध थाय छे ने दुर्गतिमां तेनां दुःख भोगवा पडे छे. आत्मानुं ज्ञान जेम जेम निर्मल थतुं जाय छे तेम तेम सांसारिक कार्यमा ममता घटती जाय छे. कर्मना योगे जे सु. ख दुःख प्राप्त थाय छे, तेने कर्मनां फल जाणीने राग द्वेष करता नथी. पुद्गलने संयोगे कर्म बांध्यां छे ते भोगवाय छे, एम विचारे छे. आ प्रमाणे-चित्तनी सुंदरता 'थाय छे, परंतु विशेष विशुद्धि नथी. थइ तेथी
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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