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________________ (१३) रूपमद, ऋद्धिमद, लोभमद, तपश्चर्यानो मद अने विद्यानो मद, जातिनो मद करवाथी नीच जातिमा उत्पन्न थाय छे, कुलमद करवाथी नीचगोत्र बंधाय छे. बलनो मद करवाथी आवते भवे निर्बलपणुं प्राप्त थाय छे. रूपनो मद करवाथी कुरूपपणुं प्राप्त थाय छे. धननो तथा ठ. कुराइनो मद् करवाथी परभो दरिनि थाय छे. जेम जेम मलतुं जाय, तेम तेम वधारे लोभ करे अने मनमा धारे के हुं तो खोबानो ज नहीं, जे जे व्यापार करीश तेमां पेड़ा ज करीश ! एवा श्राजीविका मद ध. रनार मनुष्यने कोइ वखत एवो धक्को लागे छे के, सर्व दिवसनुं पेदा करेलु एक दिवसमा चाल्छु जान छ ! अने निर्धनावस्था प्राप्त थाय छे. माटे लोभनो मद करवो नहीं. तपश्चर्यानो मद करवाथी तप निष्फल थाय छे. विद्यानो मद करवो नहीं. विद्यानो मद करनार मनुष्य पोताथी अधिक विद्वानने मान आपी शकतो नथी, पण तेनी अवगणना करे छे अने पोते वधारे ज्ञान संपादन करी शकतो नथी. गर्विष्ट होवाथी शंका पडे ते पण बीजाने पूछी शकतो नथी. एम धीरे धीरे पोतानी विद्या खुए छे अने आवता भवमा अज्ञानी थाय छे. माटे विवेकी माणसे आ पाठ प्रकारना मद त्यजवा. ३४ कृतज्ञता-पोताने कोहए करेला उपकारने भूलवो नहीं. समय श्राव्ये करेला उपकारनो बदलो वालवो. ३५ पांच इंद्रिने वश करवामां तत्पर रहे. इंद्रिों मोकली भूकवाथी आ लोकमां पण बहु नुकशान थाय छे. जेम के स्पर्शेद्रिनुं सुख भोगवा सारू हस्ति बंधनमां पडे छे. रसेंद्रिना विषयथी माछलांओ प्राण विमुक्त थाय छे. घ्राणेंद्रिना विषयथी भ्रमर कमल उपर बेसे छे. अने सूर्य अस्त थए कमल मींचाद जवाथी अंदर गोंधाइ रहे छे. चक्षु इंद्रिने वश थवाथी पतंगीना दीवामां पड़ी जीव खुए छे. श्रोतइंद्रिना विषयथी हरण पारधीने वश थइ जाय छे. एवी रीते एक एक इंद्रिने छूटी मूकवाथी प्राण जाय ले, त्यारे पांच इंद्रिओना विषयमा लुब्ध थ
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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