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________________ करे छे. एवी रीते फरस इंगिए वस्त्र मले छे ते. सूबाला के कर्कश मले छे ते बन्नेमा समभाव छे, जाणे छे के आ शरीर महारुं नहि. तो सूं. वालां बरसट वस्त्रनो पण म्हारे विकला करवो नहि. एम पांचे इंद्रि ओना विषयमा भावी रह्या छे. कोइ पण इंद्रिने पोपवानो भावज नथी. कोइ पण विषय जोर करतो नथी. विषय उपर उदासिन भाव थयो छे. तेथी मनने खेंचीने राखg पडतुं नथी. अात्मानी दशा सहज प्रगट थइ छे, तेथी इंद्रिओना विपयनुं मन यतुं ज नथी. ते पुरुषने दांत कहीए. प्रश्नः-१५९ कामनो जय ते शुं ? उत्तरः-स्त्रीने पुरुषनो अमिलाप, पुरुपने स्त्रीनो अभिलाष, नपुंसकने स्त्री पुरुष बेनो अभिलाप, एवी रीतनी कामनी इच्छाओ छे ते पोताना अात्मस्वरूपन जाणपणुं थयु छे तेथी पर स्वरूपमा वर्तवू नथी. माटे सहजे बंध थइ छे. थतीज नथी. स्वप्नामां पण स्त्री याद आवती नथी. स्त्री सामी दृष्टि पडे छे तेज वखन पोतानी दृष्टि खेंची ले छे, पण नि. रखीने जोता नथी. जेम सूर्य सामी दृष्टि पडे छे ते वखते ताप नहि सहवाथी जीव खेंची ले छे, तेम निष्कामी पुरुपे स्त्री- रूप जोवु दुःख कारी भावेलुं छे, तेथी सहजे दृष्टि पाछी खेंचाइ आवे छे. वली स्त्रीओनो संग पण करता नथी. अने कदापि कोइ स्त्री चलावा आवे छे तो पण चलावी शक्ती नथी. कदापि फरस करे तो पण पुरुषचिन्ह जागृत थतुं नशी, ने तेनी दशा पलटाती नथी. जेम सूदर्शन शेठने अभया राणीए घणाए उपसर्ग कर्या, पुरुषचिन्हने घगी विटंबना करी तो पण नपुंसक जेवू कायम रह्यं, एवा पुरुषे काम जीयो कहीए. माटे काम जीतीने एवी दशा बनाववी. • प्रश्नः-१६० मुक्तिमां शुं सुख छे के मुक्तिनो प्रयास करवो ? - उत्तरः-मुक्त जेवां सुख आ दुनियामा नी. अने ते विचार करशो तो तमने संसारमा खात्री थशे. सतारनां रहेलो जीव अज्ञानपणे संसार
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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