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________________ (२.१) प्रीति जागे अने सत्संग करे. सत्संगथी पोतार्नु स्वरूप सांभले जे निध य नये तो म्हारो आत्मा सर्वज्ञ तुल्य छ जो एवो आत्मा न रह्यो होय तो कोइ दिवस आत्मा शुद्ध न थाय. आत्मा अवराय छे ते जेम फ. टिकने डाक मुकीए छीए तेथी स्फटिक डाक जेवा रंगनुं देखाय छे पण ते डाक निकली जाय तो जेवो निर्मल छे तेवो देखाय छे पण एवो डाक परणमी गयो नथी के फरी स्फटिकनुं रूप प्रगटज न थाय. तेम आत्माने एवां कर्म लाग्यां नथी के कोइ काले विशुद्ध थाय नहि. कर्मना आवरण जेम जेम खसतां जाय तेम तेम विशुद्ध थाय ने ते प्रत्यक्ष अ. नुमान थाय छे. जेम के कोइक जीव ज्ञाननो अभ्यास वधारे करे छे तो वधारे विद्वान थाय छे तो जो आवरण अभ्यासथी खसता न होय तो बुद्धिवान केम याय ? पण एवां आवरण छ के आत्मतत्त्व प्रगट कर. वानो अभ्यास करे तो आवरण नाश पामे. माटे आत्मानी खभाविक दशा कायम छे गइ नथी, ते प्रगट करवाने व्यवहार नये गुणस्थाननो व्यवहार प्रभुजीए बताव्यो छे तेम करवो, ने तेम अभ्यास करवाथी आ. स्मा शुद्ध थशे. ने निश्चय नये अकर्ता कह्यो छे ते पण छे. जो अकतपणानुं निज स्वरूप न जाणे, तो शुद्ध करवानी बुद्धि थाय नहि, मे जे विभावीक करणी छे ते महारे कापणे करवा योग्य नथी एम जाणे. माटे निश्चय नयनो पक्ष हृदयमां अच्छीतरे राखे; पण निश्चय नये आमा विभावना का छे एम ज्यां सुधी जीव जाणे त्यां सुधी आत्मा शुद्ध करवानी बुद्धि थाय नहि. ज्यां सुधी आत्मा पुद्गलभावनो कर्ता जाणे, सां सुधी शरीरे दुःख थाय तो मने दुःख थयु, धन गयुं तो महारं धन जतुं रह्यु. स्वजननो वियोग थयो तो महारां सां मरी गयां हवे केम करीश ? महारं घर जतुं रद्यु. महारु वस्त्र बगडी गयु. मने मार्यो, मने गालो दे छे एम पर वस्तुमा महारापणुं जे जीव मानी रह्यो छे, ते जड पदार्थमां महारापणुं माने छे तेनुं क पणुं माने छे. में सुखी कर्या, में दुःखी कर्या एम माने छे तेनो त्याग करी निज स्वभावमा रहे. निचे
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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