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________________ नो विरह रह्यो. भगवतिजींनी टीकामां अभयदेवसूरि महाराजजी पण गीतार्थनी विरह कहे छे. वास्ते आपणी अल्पबुद्धिथी नक्की थइ शके नहि, माटे मध्यस्थ रहि प्रवृत्ति करवी ने जेम हठ कदाग्रह न थाय, एम वर्तवू के आत्मानी परिणती बगडे नहि. ठाणांगसूत्रना चोथा ठाणामां छापेली प्रतमां पाना २८२ नी बीजी पुंठीमां नीचे मुजब अधिकार छे. चार प्रकारना पुरुष कह्या छे. १ एक साधुधर्म ते जिनाज्ञा ते प्रते छांडे छे, ने गण गच्छनी स्थिति ते गच्छनी मर्यादा नथी मूकतो, कोइ आचार्य एवी मर्यादा कीधी छे जे बीजा गच्छना यतिने सिद्धांत न देवं. हवे ते बीजा गच्छना यतिने श्रुत न आपे, न भणावे, ते धर्म जिनाज्ञा छांडे छे, पण गच्छनी स्थिति नथी मूकता. जिनाज्ञा एवी छे के योग्य होय ते सर्वेने श्रुत देवं ते माटे. २बीजो पुरुष प्राज्ञा गच्छनी मूकी जे अन्यगच्छना यतिने योग्यने श्रुत आपे छे, ते जिनाज्ञा रूप धर्म नथी मूकतो. गच्छनी स्थिति मूके के. ३ जे अयोग्य अन्यगच्छनाने श्रुत आपे छे ते धर्म ने गच्छ ए बेने मूके छे. जे श्रुत राखवाने कोइक योग्य परना शिष्यने पोताना करी श्रुत आपे छे, ते धर्म अने स्थिति बे नथी मूकतो. श्रा मुजब ठाणांग सूत्रमा अधिकार छे. ते उपर लक्ष दइ कदाग्रहमा न पडतां सामाने तथा आपणा आत्माने लाभ थाय ते प्रवृत्ति करवी. ए चौभंगीमा एवी शंका थशे जे आचार्य गच्छनी स्थिति केवी बांधी ? ते सारु एज टीकामां कडं छे जे प्रभुना उपदेश रहित आज्ञा बांधी. कारण जे प्रभुनो उपदेश सर्व योग्यने ज्ञान आप, एवो छे. आ मुजब टीकामां छे. वली चोथा मांगावालाने सारु गाथा मूकी छे जे ए पूजनीक के तेथी जणाय छ जे ए गच्छनी खोटी रीत उपरथी चित्त उतरेलु ज. गाय छे. तत्व केवलीगम्य. .६९ प्रक्ष:-आ कालमां देवता आवे के नहि नहि आववानां कारण
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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