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________________ (१४) तो पण एक बीजा उपर द्वेष नथी. बन्ने मुक्तिना कामी छे, तेथी तेना पछीना पण आचार्यों एम कहे छे के जिनभद्र क्षमाश्रमणजी आम कहे छे ने सिद्धसेनदिवाकरजी श्राम कहे छे. एम मध्यस्थ रहे थे, पण कोइने वधता ओछा कहेता नथी. तेम आपणे पण मध्यस्थ रहे. जेम के खरतर गच्छवाला सामायिक लेतां करेमिभंते पहेली कहे छे, ने पछी इरियावही पडिकमे छे. ए रीते श्रावश्यकनी टीकामां हरिभद्रसूरि महाराज कही गया छे. वली तपगच्छमां पहेली इरियावही पडिकमी पछी करेमिभते क. हीए छीए. ए विषे श्री महानिशीथ सूत्रमा कयुं छे के इरियावही पडि. कम्या विना का काम कर नहि. ए आधारे तपगच्छवाला करे छे तो बे शास्त्र बन्ने गच्छवाला कबूल करे छे तो बन्ने गच्छवालाने मध्यस्थ रहेवू जोइए. जेम पूर्वाचार्य बे आचार्यना बे मत दर्शावे छे, पण कोइने उवेखता नथी तेम आपणे पण वर्तवू जे आ गच्छवाला आ ग्रंथने प्रा. . धारे आ क्रिया करे छे, आ गच्छवाला आ ग्रंथने आधारे करे छे. एम. करी मध्यस्थ रहे; पण एक शास्त्रने खरुं करवू, एकने खोटुं करवू, ने राग द्वेषमां पडq ते आत्माने दुःखदायक छ. ने जे प्रवृत्ति पूर्वाचार्यनी नथी ने पोतानी मतिकल्पनाथी ज छ, वली शास्त्रथी पण विरुद्ध छे तेमा पण ते शांतपणे समजे तो समजाववो, पण राग द्वेष करवो नहि. आप. णा आत्माने गुण थाय तेम प्रवृत्ति करवी. कारण जे ठाणांगजीमां चौ. भंगी छे के, परगच्छी छे ने योग्य जीव छ तेने पोताना गच्छना हठयी ज्ञान नथी आपता ते प्रभुनी आज्ञा लोपे छे. एथी समजबुजे गुणवंत होय ने परगच्छी होय तो पण तेने उवेखवो नहि. कारण जे गुणवंत होय ते समपरिणतीवालो होय, तेनी साथे परिचय करतां गच्छनी तकरार आवे नहि. एक बीजानी भूल होय तो सुधरे. माटे गच्छनो हठ करी तकरा. रमा पडवू नाहि. शास्त्र उपर दृष्टि दइ विचार. बे शास्त्रमा बे वात होय ते बे कंइ ग्रहण थती नथी. वली बेमा एके वात खोटी तो होय ज नाहि. पण बन्नेना जूदा जूदा हेतु होय, ते गीतार्थ जाणे. हालमा एवा गीतार्थ
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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